शुक्रवार, 18 जून 2021

Best story in hindi Sayaanee Bakaree | सयानी बकरी-कहानी हिंदी में

Sayaanee Bakaree story in hindi |  सयानी बकरी-कहानी हिंदी में
Sayaanee Bakaree story in hindi |  सयानी बकरी-कहानी हिंदी में

 सयानी बकरी

Hindi story

एक जंगल, खूब घना, लम्बा-चैड़ा और सुन्दर तथा हरियारी से युक्त था। उसमें तरह-तरह के जानवर तथा पशु-पंक्षी रहते थे। जंगल के बीच में घास के लम्बे चैड़े मैदान भी थे। जहाँ बहुत सारे जंगली जानवर जैसे हिरन, नील गाय, जंगली भैंसे चरते रहते थे। उन्हीं के बीच एक जंगली बकरी भी रहती थी। बकरी अकेली नहीं थी। उसके तीन प्यारे-प्यारे बच्चे भी थे।

 सभी में गुरू ही है समाया

सफेद, काले, भूरे चिंगों वाले थे। ये बच्चे बड़े प्यारे थे। और घास मंे खूब खेलते थे। बच्चे तो मगन खेलते रहते, मैदानी घास पर उछलते कूदते, एक दूसरे को पटका-पटकी करते मैदानी घास पर उछलते कूदते, मगर उसकी माँ बड़ी दुःखी रहती। 

एक कहावत है-‘‘ बकरे की माँ कब तक खैर मनावेगी? वह घड़ी आ गई, जिसके लिये बकरी डरा करती थी। वह अमावस की काली रात थी। लम्बे घने पेड़ों के बीच से हवा ‘हू-हू’ करती डराती दौड़ भाग कर रही थी। बूँंदा बांदी से सारा जंगल भीग गया था। दूर सोन कुत्ते भौंक रहे थे। दूर सियार भी ‘हुंआ-हुंआ’ कर रहे थे। लगातार कई दिनों की बारिश से जंगल के जानवर भूखे थे। 

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यह बकरी को मालूम था। उसे लगा कि उसके दरवाजे पर कोई जानवर आकर खड़ा हो गया है। उसने अनुमान लगाया कि यह कलमुँहा सियार ही होगा। उसने छेद से बाहर देखने की कोशिश की। मगर बेकार अमावस की काली रात ने पूरे जंगल को निगल लिया था। 

बकरी उठ बैठी। तेज आवाज से बोली-‘‘हाय-हाय मेरे प्यारे बच्चे। तुम लोग तीन दिन से भूखे हो। सत्यानाश हो इस बारिश का, उठो। अब दुःख न करो। यह प्लेटें टेबल पर लगाओ तुम्हारा शिकार तो तुम्हारे दरवाजे पर खड़ा है। अब वही करो जो मैं कहती हूँ।

बच्चे चिल्लाये ‘माँ खाना-खाना-खाना।’ उन्होनें जोर-जोर से चम्मच में प्लेटें बजाई।

उसे डर था कि किसी दिर शेर, चीता, तेंदुआ, भेड़िया या सोन कुत्ता उसके बच्चे को उठा ले जाएंगे। वैसे बकरी काफी तंदुरूस्त थी। उन माँसखोरों के आगे भला उसकी क्या चलती? फिर भी वह सदा चैकन्नी रहती। बच्चों को आस-पास ही रखती। सूरज ढलने से पहले ही अपने घर चली जाती।

 सच्चा उत्तराधिकारी

मगर इससे क्या? उसे मालूम था कि एक कलमुँहा सियार छुप-छुप कर उसके बच्चों को निहारा करता है। अपने मुँह से टपकने वाले लार को गुटकता रहता है। उसे मालूम था कि किसी न किसी दिन यह पाजी सियार धोखा करेगा।

बकरी थी बड़ी सियानी। उसे यह कहावत मालूम-‘‘सावधान को धोखा नहीं।’’ सो सियार से अपने परिवार को बचाने के लिए वह तरकीब सोचने लगी। उसके बच्चे तो अभी छोटे थे। मगर सयानी माँ के सयाने बच्चे भी तो थे। बकरी माँ ने बच्चों को सब समझाया और सबका काम बाँट दिया। उन्हें बताया कि जब विपदा आ पड़े तो घबराना नहीं चाहिए। जमकर उनका मुकाबला करना चाहिए। ‘‘साहस सौ रोगों की दवा है। ‘‘मेरे बच्चो, इसे गाँठ बांध लो। आखिर बकरी ने कहा-जरा सब्र करो, बस अभी मिला।

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मगर पहले शिकार तो करना पड़ेगा। उसने पुकार कर कहा-ओ बेटे बड़के, धीरे से पिछले दरवाजे से निकलकर उसकी पिछली टाँगें जकड़ लो।

‘‘ओ बेटे छोटके, अगले दरवाजे से निकल कर उसकी गर्दन चाप लो।

ओ बेटी मझली चढ़ जा अटारी पर। कूद तो उसकी पीठ पर। तोड़ उसकी कमर, कर दे ढीला अंजर पंजर। और फिर हम उसे घसीट कर घर में लाएंगे। फिर तुम लोग जी भरकर खाना।

माँ ने फिर पूछा ‘डरोगे तो नहीं?’’

बच्चे चिल्लाएं, ‘‘नहीं, नहीं डरें हमारे दुश्मन।

माँ ने कहा, ‘अच्छा तो फिर एक साथ निकल पड़ो, देखों घायल मत होना।

बच्चे एक साथ खटर पटर करने लगे।

 दुष्टरानी और छोटा भाई

बाहर सियार सब कुछ सुन रहा था वह अपने को बड़ा शूरबीर समझता था। मगर बकरी की बात सुनकर वह डर गया। जिसके बच्चे इतने निडर और बहादुर हैं, उसकी माँ कैसी होगी?

यहाँ से तो भाग निकलना ही ठीक है। सो सियार तुम दबाकर भाग गये। अपने झुण्ड से मिलकर हुआ-हुआ रोने लगे।

बकरी ने जान लिया कि सियार भाग गया है। इस तरह कमजोर बकरी अपने बुद्धि बल से अपने बच्चों का जीवन बचा सकी। एक कहावत है कि अकल बड़ी या भैंस। सच पूछो तो बड़ी भैंस ही दिखती है। अकल तो कहीं दिखती ही नहीं। मगर भैंस को उसके समाने हार माननी ही पड़ती है। इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि जो अपनी अक्ल का उपयोग ठीक समय पर ठीक ढंग से करते हैं, जीत उन्हीं की होती है।

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