शनिवार, 19 जून 2021

Best 10 Hindi Stories-बेस्ट 10 हिन्दी कहानियाँ

Best 10 Hindi Stories-बेस्ट 10 हिन्दी कहानियाँ

Hindi Story-Hindi Kahaniyan-  हिन्दी कहानी लेखकों द्वारा रचित एक रचना है, जो किसी न किसी घटना तथा आत्मज्ञान से ओतप्रोत होता है। हमारे देश में हिन्दी कहानियाँ, हिन्दी स्टोरी तथा विभिन्न प्रकार की लोक कथाएँ प्रचलित है जो बहुत उत्साहवर्धक, प्रेरक, ज्ञानवर्धक तथा मनोरंजन से परिपूर्ण हैै, जिसमें कुछ मनोरंजन कराती है तथा कुछ अपने की ओर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। यहाँ मैंने कुछ हिन्दी कहानियाँ, हिन्दी स्टोरी को संग्रह किया है जो आपके लिए रोचक तथा ज्ञानवर्धक हो सकती है आइये हिन्दी कहानियाँ पढ़ते है और कुछ नया सीखते है।

Best 10 Hindi Stories-बेस्ट 10 हिन्दी कहानियाँ
Best 10 Hindi Stories-बेस्ट 10 हिन्दी कहानियाँ

बुद्धिमान व्यापारी-Intelligent businessman

        एक व्यापारी था। बहुत ही बुद्धिमान और बहुत धनवान। उसका करोड़ों का कारोबार था। उसके शहर में आए दिन कोई न कोई चोरी होती रहती थी, मगर चोर कभी भी पकड़ा नहीं जाता था, क्योंकि हर बार वह चालाकी से चकमा देकर भाग जाता था।

उस व्यापारी ने अपने बारे में यह अफवाह फैला रखी थी कि रात को उसे कुछ दिखाई नहीं देता क्योंकि उसे रतौंधी नामक रोग है। उधर जब चोरों को यह पता चला कि उस व्यापारी को रतौंधी रोग है, तो उन्होंने उस व्यापारी के घर हाथ साफ करने की योजना बनाई। अभी तक चोर उसके घर में चोरी करने में सफल नहीं हो सका था। एक रात जब चोर उस व्यापारी के घर हाथ साफ करने की योजना बनाई। अभी तक चोर उसके घर में चोरी करने में सफल नहीं हो सका था। एक रात जब चोर उस व्यापारी के घर चोरी करने पहुँचा, तो व्यापारी की आँख खुल गई। उसने चोर को देख भी लिया। मगर सोचा कि चोर के पास कोई हथियार भी हो सकता है। उसने एक चाल चली। वह पास सो रही अपनी पत्नी से जोर से बोला- ‘‘सुनती हो, अभी-अभी मैंने एक सुन्दर सपना देखा है।’’ 

पत्नी ने पूछा- ‘‘क्या देखा है?’’ ‘‘सुबह होते ही कच्चे रेशम के दाम दोगुने होने वाले हैं। अपने घर तो ढेर सारा रेशम का धागा है न?’’ हाँ है तो सही, मगर रात को क्या करना है?’’ पत्नी ने पूछा।

दरअसल पत्नी को पता नहीं था कि घर में चोर घुसा हुआ है। व्यापारी ने उसे इशारा करके बता दिया कि चोर खम्भे के पीछे छिपा हुआ है। फिर व्यापारी बोला-’’ अगर मुझे रतौंधी नहीं होती, तो सारा धागा इसी वक्त नापकर देखता कि आखिर कितना मुनाफा सूरज निकलते ही हो जाएगा।’’ ‘‘रहने भी दो’’ पत्नी बोली। ’’ सुबह ही नापकर देख लेना कि कितना फायदा होगा। आपको कुछ दिखाई तो देगा नहीं।’’ ‘‘अरे अपने ही घर मंे क्या मुझे पता नहीं चलेगा कि कौन सी चीज कहाँ है? मुझे तो चैन ही नहीं आ रहा है। आओ, उठकर रेशम नापें। कुछ करना थोड़े ही है, बस खम्भे के चारों तरफ लपेट-लपेट कर अनुमान लगा लूँगा कि कितना कच्चा धागा है।’’

‘‘ठीक है। मैं तो सो रही हूँ, तुम्हीं नाप लो।’’ उसकी पत्नी ने कहा तथा सोने का नाटक करने लगी। इधर व्यापारी ने अंधेपन का नाटक करते हुए खम्भे के चारों ओर कच्चे रेशम को लपेटना शुरू कर दिया। इसी बीच वह कई बार चोर के सामने से गुजरा जो उसी खम्भे से सटकर खड़ा था, मगर व्यापारी रेशम लपेटते हुए यही जता रहा था कि उसे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा है। फिर धीरे-धीरे खम्भे और चोर के चारो तरफ इतने चक्कर लग गए कि चोर के लिए टस से मस होना भी मुश्किल हो गया।

चोर ने यह सोचा था कि कच्चे रेशम के धागों को तोड़कर झट से निकल भागेगा, मगर उन कोमल-कोमल धागों ने मिलकर इतना सुदृढ़ रूप धारण कर लिया था कि वह उनमें बँधकर ही रह गया। यहाँ तक कि हाथ पाँव भी न हिला सका। इसके बाद व्यापारी ने पुलिस को बुलाकर चोर को उनके हवाले कर दिया। चोर ने यह जान लिया कि कच्चे धागे आपस मे जुड़कर जब एक हो जाते हैं तो वे भी पक्के हो जाते हैं। अर्थात् एकता की ताकत सबसे महान व अचूक है।

कहानी से शिक्षा-Story learning

  • दोस्तों हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा बुद्धि से काम लेना चाहिए।
  • एकता की ताकत सबसे महान व अचूक है। अतः हममें एकता होनी चाहिए।
  • किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए।
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तोते का संदेश-Parrot message

        ईरान में एक व्यापारी था। उसके पास एक बहुत बातूनी तोता था। वह उस तोते से बहुत प्रेम करता था। वह सदा व्यापार में उलझा रहता। पर जब भी उसे समय मिलता, वह तोते से बातें करके अपना मन बहलाता था।
एक बार व्यापारी की इच्छा हुई कि वह भारत वर्ष की तरफ जाए व्यापारी ने आवश्यक काम समाप्त किया और फिर वह भारत वर्ष के भ्रमण के लिए चल पड़ा। चलते समय परिवार के सभी सदस्यों ने उपहारों की फरमाईश की। व्यापारी ने अपने मित्र तोते से स्वयं पूछा- ‘‘ऐ मेरे दोस्त तोते! तुम्हारे लिए मैं भारत वर्ष से क्या लाऊँ?’’
तोता दुःखी मन से बोला- ‘‘ मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। पर मेरी हार्दिक इच्छा है कि आप जब भारत पहुँचे और हरे-भरे वनों में प्रसन्न और स्वतंत्र घूमने वाले तोतों को देखें, तो मेरा नमस्कार उन तक पहुँचाए और मेरा यह संदेश भी उनसे कहें कि क्या इसी को दोस्ती और संबंधी होना कहते हैं कि तुम लोग स्वतंत्र घूमो, हरे भरे खुले वातावरण में उन्मुक्त उड़ो और मैं यहाँ कैदी के समान पिंजड़े में बंद रहूँ? मेरे बारे मंे भी तो विचार करो और दूर पड़े कैदी के लिए कोई उपाय निकालो। व्यापारी ने ध्यान से संदेश सुना और वायदा किया कि वह अवश्य उसका संदेश पहुँचाएगा।’’
व्यापारी भारतवर्ष पहुँचा। एक घने सुन्दर वन से गुजरते हुए उसने वृक्षों पर फुदकते हुए ढेरों तोते देख, वह रूक गया। एक वृक्ष के नीचे जाकर उसने तोतों से अपने प्रिय बातूनी तोते का संदेश कहना शुरू किया। अभी वह अपनी बात पूरी भी नहीं कह पाया था कि वृक्षों पर बैठे तोतों में से एक तोता कांपा और तड़पकर धरती पर आ गिरा।
यह दृश्य देखकर व्यापारी दुःखी होकर सोचने लागा-‘‘यह क्या हुआ? इस नन्हें जीवन की मृत्यु का कारण मैं ही बना। क्यों मैंने संदेश सुनाया? इससे दुख नहीं सहा गया। बेचारा अपनी जान से हाथ धो बैठा।’’
थोड़े समय तक वह बुत बना खड़ा रहा। फिर विचारने लगा- ‘‘अब पछताने से क्या होता है। कमान से निकला तीर वापस थोड़े ही आता है?’’
वह विचार में डूबा हुआ लौट आया। अपने देश ईरान की तरफ लौटने से पहले उसने अपने सारे परिवार के लिए ढेर सारे उपहार खरीदे।
जैसा ही वह अपने घर में घुसा, तोते ने व्याकुलता से पूछा- ‘‘कहाँ है मेरा उपहार? तोतों तक मेरा संदेश पहुँचा दिया था न? मेरे संबंधियों ने क्या उत्तर दिया? जो भी उन्होंने उत्तर दिया हो बिना घटाए-घटाए एक-एक शब्द मुझे बताइए।’’
ये सारे प्रश्न तोते ने एक साँस में कह डाले। व्यापारी ने ठंडी साँस खींची- ‘‘ऐ मेरे प्यारे तोते! इस बात को भूल जाओ कि तुमने कोई संदेश मुझसे कहलवाया था। मैं स्वयं पश्चाताप की अग्नि में जल रहा हूँ कि मैंने क्यों तुम्हारा संदेश पहुँचाया?’’ तोते ने कहा-‘‘कुछ तो बताइए?‘‘
व्यापारी ने दुःखी कंठ से उत्तर दिया- ‘‘जिद मत करो। यह बात सुनने की हिम्मत तुममें नहीं है। मैं स्वयं को कोस रहा हूँ कि क्यों मैंने तुम्हारा कहना माना।’’
पर ऐसा क्या हो गया है जो आप इतने चिन्तित हो उठे हैं? तोते ने व्यग्रता से पंख फड़फड़ाए।
व्यापारी ने उत्तर दिया-‘‘मैं तुम्हारा संदेश तोतों से कह ही रहा था कि उनमें से एक तोते ने क्रोध व दुःख से अपनी जान दे दी। वह वृक्ष पर बैठा काँपता रहा। फिर तड़पकर नीचे गिर पड़ा। यह देखकर मैं लज्जित हो उठा। पर लज्जित होने से लाभ ही क्या था?’’
जैसे ही व्यापारी ने बात समाप्त की, तोता काँपने लगा और पिंजड़े में गिर पड़ा। उसके प्राण पखेरू उड़ गए। इस दृश्य को देखकर व्यापारी चिल्ला पड़ा और विलाप करने लगा। वह दुःख से हाथ मलने लगा। फिर दूसरी गलती हो गई। पर रोने से लाभ ही क्या था? उसने पिंजड़े का दरवाजा खोला। तोते को बाहर रखा, तोता झट उड़कर सामने दीवार पर बैठ गया।
व्यापारी का मुख अचरज से खुला रह गया। उसकी समझ में न आया कि वह क्या बोेले? तोते ने अपना मुख व्यापारी की ओर घुमाया और बोला- ‘‘मैं आपको कितना धन्यवाद दूँ कि आप मेरे लिए कैसा अनमोल उपहार लाए हैं। वह उपहार है स्वतंत्रता। उस तोते ने अपने को गिराकर बताया थ कि मैं स्वयं को किस प्रकार स्वतंत्र करा सकता हूँ।’’
व्यापारी निःशब्द खड़ा रह गया और तोता आकाश में फूर्र से उठ गया।

कहानी से शिक्षा-Story learning

    किसी भी जीव को बन्धक बनाकर या पिंजरे में कैद करके नहीं रखना चाहिए क्योंकि उसकी भी अपनी जीवन होती है, वह भी आकाश तथा स्वतंत्र वातावरण में उड़ना व रहना चाहता है और अपने सगे संबंधियों के साथ खेलना पसन्द करता है।



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सत्संग का महत्व-Importance of satsang

        एक गाँव था जिसके चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और घने जंगल थे। गाँव के बीच में एक पगडंडी जाती थी जिसमें सुबह से शाम तक गाँव वालों तथा यात्रियोें का आना जाना लगा रहता था। उसी गाँव में रामदास नामक एक वृद्ध व्यक्ति अपने घर के दरवाजे पर नियमित रूप से आग जलाकर बैठ जाता। इधर-उधर से गुजरने वाले ग्रामीण उसके पास बैठते, आग तापते, तम्बाकू पीते, अच्छी-अच्छी बातें करते और चले जाते। रामदास सामान्य आर्थिक स्थिति का था किन्तु उसने अपने जीवन में इतना धन कमा लिया था कि लकड़ी और तम्बाकू का खर्चा आसानी से उठा लेता था।
रामदास के चार लड़के थे। चारों को अपने पिता का इस तरह लकड़ियाँ और तम्बाकू का खर्च करना बहुत बुरा लगता था। वे इसे धन तथा समय की बरबादी समझते थे। उनकी पत्नियाँ भी अपने ससुर को सनकी तथा पागल समझती थीं। इसी बात को लेकर कभी-कभी रामदास तथा उसके बेटों में कहासुनी भी हो जाती थी। रामदास उन्हें समझा देता, तो वे मान जाते। किन्तु जब उनकी पत्नियाँ उनके कान भरती तो फिर चारों भाई अपने वृद्ध पिता से तम्बाकू और लकड़ी का खर्चा बन्द करने के लिए कहने लगते। एक दिन चारों की पत्नियों ने मिलकर अपने-अपने पतियों को रामदास की तम्बाकू व लकड़ी के खर्चें पर प्रतिबंध लगाने की जिद की। चारों लड़के वृद्ध पिता के पास पहुँचे और सिर झुकाकर खड़े हो गए।
कहो क्या बात हैं? रामदास ने अपने बेटों की ओर ध्यान से देखते हुए पूछा।
पिता जी हम आज से आपका लकड़ी व तम्बाकू का खर्चा बन्द करना चाहते हैं। बड़े बेटे ने कुछ गंभीरता से कहा।
‘‘मैं भी यही सोच रहा था तुम लोग प्रतिदिन अपनी-अपनी पत्नियों के कहने में आकर मेरी लकड़ी व तम्बाकू का खर्चा बंद करने की बात करते हो। मैं आज से ही यह बंद तो कर दूँगा, लेकिन यह अच्छी बात नहीं होगी।’’ रामदास ने कठोरता से कहा।
‘‘पिता जी यह फालतू खर्चा है। जितना पैसा आप लकड़ी और तम्बाकू पर खर्च करते हैं इतने पैसों को जोड़कर हम कुछ दिनों में काफी धन एकत्रित कर सकते हैं और उससे छोटा बेटा अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया’’
’’व्यर्थ परेशान मत हो मेरे बेटो। मैं सब समझता हूँ। मुझे समझाने का प्रयास मत करो, मेरा जो कुछ भी है, तुम्हारा ही है। मैं आज से ही लकड़ी और तम्बाकू का खर्च लेना बंद कर देता हूँ। रामदास ने छोटे बेटे की बात काटते हुए कहा और जलती हुई आग तथा तम्बाकू की थैली पकड़कर जंगल की ओर घूमने निकल गये। चारों बेटे बहुत खुश थे। खुशी के दो कारण थे एक तो वे सोच रहे थे कि आज से उनकी पत्नियाँ उनसे बहुत खुश रहा करेंगी और दूसरा वे लकड़ी व तम्बाकू पर होने वाले खर्च को बचाकर शीघ्र ही धनवान बन जाएँगे।’’
धीरे-धीरे काफी समय बीत गया। चारों बेटों की पत्नियाँ तो अभी भी किसी न किसी बात पर अपने अपने पतियों से लड़की थीं किन्तु उनके पास अब काफी धन जमा हो गया था। रामदास प्रतिदिन प्रातः अकेला ही घूमने निकल जाता और शाम तक लौटता। वह अपने बेटों की प्रगति की प्रशंसा तो करता था। किन्तु अब उसके घर के सामने आने जाने वालों का बैठना कम हो गया था। इससे वह उदास रहता। चारों बेटे दिन भर खेती किसानी में मस्त रहते और शाम को घर लौटने पर अपनी-अपनी पत्नियों के साथ घूमने फिरने निकल जाते या घर के कामकाज में लग जाते। 
        रामदास के लिए वृद्धावस्था में अकेलेपन का कष्ट अत्यन्त दुखदायी बन गया था। एक दिन चारों बेटों का खेती की जमीन को लेकर झगड़ा हो गया। रामदास को मालूम हुआ तो उसे बहुत दुख हुआ किन्तु वह चुप रहा। दूसरे दिन पंचायत बैठ गयी। चारों बेटों ने काफी धन बचा लिया था। वे समृद्ध हो गए थे। किन्तु सत्संग के अभाव के कारण उनमें सामाजिक ज्ञान कम था। वे समाज के रीति रिवाज व पंचायत के कार्यों को नहीं समझते थे। लालची प्रकृति के कारण उनके साथ गाँव का कोई व्यक्ति नहीं था। 
अतः निर्दोश होते हुए भी वे पंचायत के समक्ष अपने को बेगुनाह सिद्ध नहीं कर पा रहे थे। दूसरा पक्ष सभी तरह से समर्थ था उसके साथ पूरा गांव था क्योंकि वह गाँव के सभी कार्यों में आगे बढ़कर भाग लेता था। धीरे-धीरे काफी समय हो गया। पंचायत कोई फैसला नहीं कर पा रही थी। चारों बेटों ने जितना धन वृद्ध पिता की लकड़ी व तम्बाकू पर प्रतिबंध लगाकर बचाया था सब खर्च हो गया था और पास का भी काफी धन निकल गया था। अब वे परेशान और उदास रहने लगे। एक दिन रामदास की दृष्टि अपने बेटों पर पड़ी वे उसे काफी परेशान व दुखी दिखाई पड़े। 
        प्रिय बेटों इधर आओ। क्या बात है? तुम लोग इतने दुखी और परेशान क्यों हो? रामदास ने चारों बेटों को पास बुलाते हुए पूछा। जी पिता जी, कुछ नहीं। बड़े भाई की बात करने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी क्योंकि लकड़ी और तम्बाकू बंद करने की सर्वाधिक जिद उसी ने की थी।
घबराओं मत जो भी बात हो साफ-साफ कहो। हो सकता है वृद्ध पिता तुम्हारा दुःख दूर करने में कुछ सहयोग कर सके। रामदास ने बड़े प्यार से कहा।
पिता जी, हमने आपका लकड़ी और तम्बाकू का खर्चा बंद करके अच्छा नहीं किया। बड़े भाई ने दुखी स्वर में मुँह लटकाकर कहा।
लेकिन पहले पूरी बात तो बताओ। रामदास ने फिर प्यार से पूछा।
चारो भाईयों ने खेती के झगड़े व पंचायत की पूरी कहानी अपने वृद्ध पिता को सुना दी। यह भी बता दिया कि जितना धन उन्होंने बचाया था, सब खर्च हो गया और पास का भी काफी धन खर्च हो गया। मेरे बेटांे अब तुम क्या चाहते हो? रामदास ने मुस्कराकर पूछा।
पिताजी, आप आज से ही घर के बाहर आग जलाकर तम्बाकू की थैली रखकर बैठना आरंभ कर दीजिए। आपके पास, आप-पास के लोग आएँगें उन्हीं से कुछ बात बन सकती हैं। चारों बेटों ने अपने मन की बात कह दी। ‘‘ठीक है।’’ रामदास ने गर्दन हिलाई। वह बाहर उसी स्थान पर बैठ गया जहाँ बैठा करता था। बड़े लड़के ने तुरन्त लकड़ियाँ लाकर रख दी, दूसरे ने आग सुलगाई, तीसरे बेटे ने तम्बाकू की थैली लाकर रख दी और चैथे ने जगह की सफाई कर दी। दो चार दिन मे ही फिर से राहगीर रामदास की तरह आग तापते, तम्बाकू पीते, अच्छी-अच्छी बाते करते और चले जाते।
एक दिन एक वृद्ध राहगीर से जो उसी गाँव का रहने वाला था रामदास ने अपने बेटों की विपत्ति के बारे मेें कहा। वृद्ध राहगीर बड़ा बुद्धिमान था उसने आश्वासन दिया कि अगली पंचायत में निर्णय उसके पक्ष में होगा। रामदास ने अपने बेटों को युक्ति बताई तथा अगली पंचायत में वृद्ध के निर्देशानुसार कार्य करने को कहा। चारों भाइयों ने अपने पिता के कहे अनुसार ही पंचायत में बात की।
पंचायत समाप्त हो गयी व निर्णय उनके पक्ष में हुआ। घर लौटने पर चारों बेटों ने अपने पिता को प्रणाम किया व उनकी लकड़ी व तम्बाकू का खर्च दुगना कर दिया। बेटों व उनकी बहुओं को सत्संग का महत्व अब मालूम हो चुका था।

कहानी से शिक्षा-Story learning

  • माता पिता का आदर करना चाहिए, अपनी स्वार्थ हित के लिए माता पिता का परित्याग नहीं करना चाहिए।
  • एकता में शक्ति होती है।
  • जीवन में संगत का बड़ा प्रभाव पड़ता है, इसलिए सही संगत करनी चाहिए।

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बुद्धिमान मंत्री-Wise minister

        काफी समय पहले की बात है। एक राजा के राज्य में ज्योतिषियों को बड़ा सम्मान मिलता था। राजा अत्यन्त विलासी और डरपोक था। वह राज्य की छोटी से छोटी समस्याओं के निदान के लिए ज्योतिषियों से परामर्श लिया करता था। अतः राजदरबार में ज्योतिषियों की भीड़ रहती थी। एक बार उसके राज्य में एक ऐसा ज्योतिषी आया जिसने जिस किसी भी व्यक्ति को जो कुछ बतलाया वह सत्य हुआ। लोगों में विश्वास था कि उस ज्योतिषी की जुबान पर सरस्वती बैठकर बोलती है।
ज्योतिषी की प्रशंसा धीरे-धीरे राजा के कानों तक पहुँची। एक दिन राजा ने दरबार में आज्ञा दी, नए ज्योतिषी को कल दरबार में सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया जाए एवम् उत्सुक प्रजा भी उपस्थित रहे। अगले दिन वह ज्योतिषी राजदरबार में उपस्थित हुआ और आम व खास जनता से दरबार भर गया था। राजा की शान में अनेक बातें हो रही थी। तभी राजा ने ज्योतिषी से प्रश्न किया- ‘‘आप यह बताइए कि मैं कब तक राज्य कर सकूँगा?’’ इस प्रश्न के उत्तर के लिए उपस्थित लोग उत्सुक हो गए। कुछ देर रूकने के बाद ज्योतिषी ने कहा- ‘‘महाराज! जान की माफी चाहता हूँ।‘‘ इस पर राजा ने कहा- ‘‘आपको कोई भय नहीं होना चाहिए। आप निः संकोच कहें। आप तो हमारे अतिथि हैं, फिर डर किस बात का?’’ तब ज्योतिषी ने कहा-‘‘ महाराज! आप इस राज्य का शासन मात्र चार महीने और करेंगे।’’
सुनते ही सब अवाक रह गए। थोड़ी देर चुप्पी रही। तब मंत्री ने सभी को संबोधित कर सभा समाप्ति की घोषणा कर दी। आठ दिन गुजर गए, पर राजा दरबार में उपस्थित नहीं हुए। अब उनका मन राज-काज में नहीं लगता था। उन्हें तो परलोक की चिन्ता सता रही थी। 
        अतः ब्रम्हाणों को भोजन कराना, दान-पुण्य करना तथा जप-तप में ही उनका दिन गुजर जाता था। महामंत्री जब भी किसी समस्या को लेकर उनके पास जाते तो राजा कहते अब मेरे पास जो वक्त है, उससे मैं अपना परलोक सुधारना चाहता हूँ। अतः आपको जो भी उचित लगे, जनहित में कीजिए। अनेक बार प्रयास किए गए पर राजा दरबार में उपिस्थत नहीं हो सके। इसी बीच गुप्तचरों ने सूचना दी कि पड़ोसी राजा उमराव सिंह हमारे राज्य पर आक्रमण की तैयारी कर रहा है। इस गुप्त संदेश पर राजा से चर्चा की गई, पर विलासी राजा मृत्यु के डर से कोई निर्णय नहीं ले सका। महामंत्री ने आपात् बैठक बुलाई और समस्या का निदान सोचने लगे। विचारोपरान्त सर्वसम्मति से यह तय किया गया कि सर्वप्रथम राजा के मन से ज्योतिषी की भविष्यवाणी का भय भगाया जाए। इस पर विशेष सलाहकार मंत्री ने कहा-‘आप सब बेफ्रिक रहें, यह कार्य मैं कर दूँगा।’’ आप सब प्रयास कर उन ज्योतिषी महाशय को एक बार फिर दरबार में उपस्थित करा दे एवम् सेना को आक्रमण के लिए तैयार रखते हुए एक टुकड़ी उमराव सिंह के राज्य की सीमा पर भेज दें।
        दो दिन बाद राजदरबार में उस ज्योतिषी को पुनः उपस्थित किया गया। आज दरबार में राजा से विशेष रूप से उपस्थित होने का आग्रह किया गया था। अतः वह प्रजा के साथ उपस्थित थे। सभी उपस्थित हो चुके थे। कार्यवाही प्रारम्भ हो चुकी थी, तभी राजा के विशेष सलाहकार ने राजाज्ञा चाही। आज्ञा मिलने पर उन्होंने उस ज्योतिषी से कहा- ‘‘कृपया पुनः गणनाकर बताइये कि हमारे प्रजा-पालक महाराज की छत्रछाया प्रजा पर कब तक रहेगी?’’
        ज्योतिषी ने गणना कर बताया- ‘‘हमारे प्रजा पालक महाराज तीन माह दो दिन और प्रजा पालन करेंगे।’’
तब मंत्री बोला- ‘‘ आपके पास कोई प्रमाण है कि आप जो कुछ कह रहे हैं वह सब सही ही है।’’
ज्योतिषी ने कहा- ‘‘ज्योतिष तो भविष्य के लिए कथन होता है, जो अभी हुआ ही नहीं है उसका कोई प्रमाण वर्तमान में नहीं होता।’’ तब मंत्री महोदय बोले- ‘‘मैं तो उस भविष्यवाणी पर विश्वास रखता हूँ जिसका वर्तमान में कोई प्रमाण हो?’’
जवाब मे ज्योतिषी ने कहा-‘‘ ऐसा संभव नहीं है।’’ इस पर मंत्री ने कहा- ’’यह संभव नहीं अपितु अत्यन्त सरल भी है।’’ 
मंत्री की इस बात पर राजा सहित दरबार के अन्य लोग भी आश्चर्य में पड़ गए। मंत्री ने कहा- ‘‘ज्योतिषी जी, कृपया यह बताइये कि आपकी जिन्दगी अभी कितनी शेष है?’’
ज्योतिषी ने गणना कर बताया-‘‘मुझे अभी 34 साल, 8 महीने, 4 दिन और जीना है।’’
इस पर मंत्री ने फिर पूछा-‘‘क्या आपके पास इस भविष्यवाणी की सत्यता का कोई प्रमाण है?’’ ज्योतिषी ने नहीं में सिर हिला दिया।
किसी को समझ नहीं आ रहा था कि मंत्री क्या प्रमाणित करना चाहते हैं तभी मंत्री ने फिर कहा-‘‘महाराज! मेरे पास वर्तमान में प्रमाण है कि ज्योतिषी की भविष्यवाणी असत्य है। मैं इसी वक्त इनकी भविष्यवाणी को झुठला सकता हूँ।’’
दरबारी मंत्री की दलील सुनकर अवाक रह गए। प्रकरण को एक नया मोड़ मिला। राजा ने मंत्री से कहा - ‘‘आपके पास ज्योतिषी की भविष्यवाणी असत्य साबित करने के प्रमाण हैं तो वे तुरन्त प्रस्तुत किए जाएँ।
मंत्री ज्योतिषी के आगे खड़े हो विनम्रता पूर्वक बोले- ‘‘महाराज! मैं एक बार पुनः आज्ञा चाहता हूँ।’’ राजा ने पुनः आज्ञा दे दी। उपस्थित लोग अभी तक समझ भी न पाए थे कि मंत्री कौन सा गुल खिलाना चाहते हैं। मंत्री ने एक झटके से अपनी तलवार निकाली और एक क्षण में ज्योतिषी का सिर धड़ से अलग कर दिया। मंत्री की यह हरकत देख राजा आग बबूला हो गया। राज्य के ज्योतिषी और ब्राम्हण ‘‘ब्रह्म हत्या’’ ब्रह्म हत्या चिल्लाने लगा। किसी को विश्वास नहीं हो रहा था पर जो सत्य था, वह सामने था। उस ज्योतिषी के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।
राजा ने कहा- ‘‘ मंत्री, तुम जानते हो तुमने ब्रम्ह हत्या की है जिसके लिए तुम्हें मृत्यु दण्ड दिया जा सकता है? बताओ, तुमने ज्योतिषी की हत्या क्यों की।
मंत्री ने अत्यन्त शान्त स्वर में जवाब दिया-‘‘ महाराज! जो आदमी यह नहीं जानता कि पलभर बाद उसकी मृत्य सुनिश्चित है, वह 34 साल और जीने की भविष्यवाणी कर रहा है?‘‘ क्षमा करें, मैंने ज्योतिषी की भविष्यवाणी को असत्य साबित करने के लिए पहले अनुमति ले ली थी बाद में यह कृत्य किया।
अतः यह दण्डनीय अपराध नहीं अपितु ज्योतिषी को झूठ बोलने पर स्वतः ही दण्ड मिल गया। मैंने यह कृत्यु इसलिए भी किया है कि सब यह जान लें कि भविष्य का कोई प्रमाण नहीं होता, अतः भविष्यवाणियों के भरोसे कोई कार्य या राजकाज नहीं चलाया जा सकता। राजकाज के लिए तो विद्वानों की सूझबूझ और शूरवीरों की सेवाएँ आवश्यक होती हैं, न कि ज्योतिषियोें की भविष्यवाणियाँ। 
        अतः महाराज आप तो चिरायु हैं। मात्र 3 महीने 4 दिन की जिन्दगी वाली भविष्यवाणी का कोई प्रमाण नहीं हैं। अतः उसे झूठा मानकर पुनः राजकाज प्रारम्भ कीजिए। इससे प्रजा अति प्रसन्न होगी।
        राजा ने उठकर मंत्री को धन्यवाद दिया और सभा की कार्यवाही समाप्ति की घोषणा करते हुए प्रजा से कहा- ‘‘ आज के बाद मैं ज्योतिषयों के चक्कर में नहीं पडँ़ूगा। मेरी आँखें खुल गई हैं।’’ मैं अपने मंत्री का आभारी हूँ जिसने इस कठिन समय में मेरी आँखे खोली हैं। वास्तव मे सच्ची सेवा ही राजा के लिए परलोक सुधार का मार्ग है। सभी लोग मंत्री की बुद्धिमानी की प्रशंसा करते हुए चले गए।

कहानी से शिक्षा-Story learning

  • हमें व्यर्थ ही भविष्यवाणी की उलझन में नहीं फँसना चाहिए।
  • हमेशा धूर्तों से सावधान रहना चाहिए।
  • भाग्य के भरोसे रहने पर भाग्य सोया रहता है परन्तु स्वयं उठ जागने से भाग्य भी जाग उठता है।
  • कठोर मेहनत ही सफलता का एक मात्र रहता है।
नोट- हमें उम्मीद है कि "Hindi Story" तथा "Hindi Kahaniyan" पढ़कर आपको पसन्द आई होगी। इस कहानी को पढ़कर शिक्षा मिली हो तो प्लीज कमेन्ट करके मुझे जरूर बताये तथा अपने मित्रों तथा दोस्तो के साथ जरूर से जरूर शेयर करें। धन्यवाद।




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