Heera Ne Kaan Pakade Hindi Story हीरा ने कान पकड़े hindi Kahani |
हीरा ने कान पकड़े
चन्द्रपुर के महाराजा महीपाल बड़े प्रतापी थे। उनके राज्य में सभी सुख-शांति से रहते थे। राज्य में हरियाली एवं भरपूर धन धान्य था।
चन्द्रपुर के लोग दिन रात मेहनत करते और अपने राज्य के विकास में लगे रहते।
उन्हें महाराजा महीपाल से बहुत स्नेह था। वे महाराजा का बड़ा आदर सत्कार करते थे। इसका कारण यह था कि महाराजा भी बड़े दयालु थे। मनुष्य तो मनुष्य, वह पशु पक्षियों तक के प्रति किए गए किसी भी तरह के अन्याय को सहन नहीं करते थे।
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उनके राज्य में एक किसान था। नाम था हीरा। हीरा के पास एक बैल था। बैल बड़ा बलवान था। हीरा उसे खिलाता भी बहुत था और उसे बेहद प्यार करता था।
सुबह होती। हीरा बैल को अपने साथ खेत पर ले जाता। उसे हल में जोतकर खेतों की बुवाई करता। फसल कटने का समय आता, तो वह उपज को बैलगाड़ी में लाद, उसे बेचने शहर ले जाता।
वैसे तो हीरा में कोई बुराई नहीं थी। सादा जीवन उसका स्वभाव था। पर उसमें एक बुरी आदत थी। जिससे वह जितना ही ज्यादा प्यार करता, उसे उतना ही ज्यादा बुरा-भला कहता। जब सुबह होती और वह बैल को हांककर खेतों में ले जाने को होता, तो कहता-‘‘चल वे फिसड्डी। चल उठ। खा-खाकर मोटा होता जा रहा है। कुछ काम-वाम भी किया कर। निखट्टू कहीं का! चल उठ।‘‘
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बैल यह सुनकर हमेशा ही मन मसोसकर रह जाता है। वह सोचता-‘हीरा की मैं कितनी सेवा करता हूँ। फिर भी मुझे सेवा का यह फल मिलता है।’ पर वह कर भी क्या सकता था। बुरा-भला कहने से उसका बैल चिढ़ता है, यह हीरा बखूबी समझता था।
एक दिन तंग आकर बैल ने महाराजा के पास शिकायत कर दी। महाराज ने हीरा को बुलाया और पूछा-‘‘क्यों जी, क्या तुम इस बैल को बुरा-भला कहते हो?’’
पहले तो हीरा कुछ समझ न पाया, पर जब उसे यह लेगा कि बैल ने उसकी शिकायत राजा से कर दी है, तो उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। बोला -‘‘महाराज! मुझे क्षमा कर दें। मैं झूठ नहीं बोलूँगा। मुझसे अनजाने में गलती हो गई है। मैं तो इसे प्यार में आकर ऐसा कहता था। अगर इसे बुरा लगता है, तो मैं आज के बाद इससे कुछ नहीं कहूँगा। यह गलती अब मुझसे दोबारा कभी नहीं होगी।’’
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‘‘ठीक है। इस बार हम तुम्हें छोड़ देते हैं। फिर कभी ऐसा हुआ, तो तुम्हें कठोर दण्ड दिया जाएगा।’’- राजा ने उसे चेतावनी दी और छोड़ दिया।
हीरा की जान बची। उसने बैल को लिया और घर की ओर चल दिया। राह में उसने बैल से कहा -‘‘तुम मेरी बातों को बुरा क्यों मान जाते हो? मैं तो तुम्हें प्यार से ऐसा कहता हूँ।’’
बैल ने कहा -‘‘जब तुम्हें पता है कि गलत बात सुनते ही मैं अपना आपा खो देता हूँ, तो तुम मुझसे ऐसी बातें क्यों कहते हो?’’
‘‘ठीक है। अब नहीं कहूँगा।’’ हीरा ने कहा। दोनों घर आ गए।
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सुबह हुई। हीरा उठा। उठके उसने प्यार से बैल को पुचकारा। उसे लेकर खेतों पर चला गया। इसी तरह कई दिन बीत गए।
चन्द्रपुर राज्य का वार्षिक उत्सव आने वाला था। इस अवसर पर तरह-तरह के खेत भी होते थे। बैलगाड़ियों की दौड़ मुख्य आकर्षण थी। हीरा कई सालों से उसमें भाग लेता आ रहा था। अपने बलिष्ठ बैल की वजह से ही यह पिछले दो सालों से इस दौड़ को जीत रहा था।
इस बार भी उसे पक्का विश्वास था कि वह दौड़ अवश्य जीतेगा।
दौड़ का दिन आ गया। राज्य के हर कोने से लोग अपनी बैलगाड़ियाँ लेकर आए। उन्होने बैलगाड़ियों को तरह-तरह से सजा रखा था।
दौड़ शुरू हुई। बैल सरपट भागने लगेे। हीरा का बैल भी भागने को ही था कि हीरा ने बैल को पुचकारा और कहा-‘‘चल बे फिसड्डी, चल भाग। खा-खाकर मोटा होता जा रहा है। निखट्टू कहीं का! चल भाग।’’
यह सुनते ही उसका बैल तुनक गया। वह तेजी से तो भागा लेकिन थोड़ी ही दूर जाकर रूक गया। हीरा ने उसे बहुत धमकाया, गालियाँ तक दीं और मारा भी, पर बैल टस मस न हुआ।
हीरा दौड़ हार गया। उसे बड़ा मलाल हुआ। उसने बैल को बहुत कोसा। उसे घसीटता हुआ घर वापस आ गया।
एक दिन हीरा ने अपने बैल से पूछा-‘‘ दौड़ में उस वक्त तुम रूक क्यों गए थे?’’
-‘‘मैं क्या करता। तुमने अपना वायदा जो तोड़ा था। तुमने मुझे उलटा-सीधा कहा था?’’
हीरा को बड़ा पछतावा हुआ। उसने सोचा-‘अगर मैं बैल को गाली न देता, तो यह दौड़ जीतकर बहुत सारे इनाम पा जाता।’
बैल ने कहा-‘‘घबराओ नहीं। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा। दो महीने बाद राजकुमार का राज्यभिषेक है। उस अवसर पर भी उत्सव होंगे ही। खेल होंगे तो बैलगाड़ियों की दौड़ भी होगी। तब मैं तुम्हें जिता दूँगा। लेकिन हाँ..........................’’
वह अपनी बात पूरी भी न कर पाया था कि हीरा बोला -‘‘हाँ, समझ गया। अब मैं तुम्हारी बातों का ध्यान रखूंगा।’’
राज्यभिषेक का दिन आ गया। यह वास्तव में राज्य के लिए एक उत्सव का दिन था। सारा नगर दुल्हन की तरह सजाया गया था। जगह-जगह तोरण द्वार सजे थे। सड़कें और गलियाँ तक फूलों से महक रहे थे। ऐसा लगता था, जैसे यह चन्द्रपुर न होकर, कोई फूलपुर हो। राज्याभिषेक के बाद राजकुमार की शोभा-यात्रा सारे नगर में निकलनी थी। फिर राजकुमार को खेलों का शुभारंभ करना था।
ठीक समय पर सब कुछ हो गया। दौड़ शुरू हुई। बैलगाड़ियों में बंधी घंटियों की आवाज से सारा वातावरण गूंज उठा। बैलों के सरपट भागने से उठ रही धूल चारों दिशाओं में फैल गई।
हीरा के बैल ने जो कुलांचें भरी तो वह शुरू से ही सबसे आगे निकल गया। जैसे-जैसे दौड़ में गति आती गई, हीरा की बैलगाड़ी और दूसरी बैलगाड़ियों के बीच दूरी बढ़ती गई।
हीरा का बैलगाड़ी को कोई भी पकड़ न सका। हीरा जीत गया। उसे भरपूर इनाम मिले। राजकुमार के राज्याभिषेक के शुभ अवसर पर आयोजित इस दौड़ को जीत लेने पर उसे पूरा एक गाँव इनाम में दिया गया।
हीरा बहुत खुश था। उसने अपने बैल को चूम लिया। बैल के शरीर में सिहरन सी हुई। पर तभी हीरा बोला-‘‘घबराओ नहीं। अब मैं कभी भी तुमसे गलत बात नहीं कहूँगा। लो, मैंने अपने कान पकड़े।’’
और ऐसा लगा, जैसे बैल देखकर मुसकरा रहा हो।
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