शुक्रवार, 18 जून 2021

Svaarth Ka Phal Short Moral Story in Hindi| स्वार्थ का फल-लघु नैतिक कहानी हिंदी में

Svaarth Ka Phal Short Moral Story in Hindi| स्वार्थ का फल-लघु नैतिक कहानी हिंदी में
Svaarth Ka Phal Short Moral Story in Hindi| स्वार्थ का फल-लघु नैतिक कहानी हिंदी में

 स्वार्थ का फल

किसी गाँव में एक ऊँट और एक सियार साथ साथ रहते थे। वे साथ-साथ भले ही रहते थे किन्तु उनमें कोई गहरी दोस्ती भी नहीं थी। वे केवल पड़ोसी की भाँति ही रहा करते थे। उस गाँव के पास ही एक नदी बहती थी। नदी के दूसरी ओर के बालू के मैदानों में उस समय खरबूजे की खेती होती थी। यह उस सियार को ही मालूम थी। उसका मन प्रतिदिन खरबूजे खाने के लिए ललचाता था। उसकी जीभ से लार टपकने लगती थी। लेकिन वह वेबस था। नदी पार करना उसके बस की बात भी नहीं थी।

दुष्टरानी और छोटा भाई

सियार बड़ा चालाक था। एक दिन उसके दिमाग में यह विचार आया कि ऊँट की पीठ पर बैठकर नदी पार कर सकता है। उस विचार के सूझते ही वह ऊँट के पास जा पहुंचा ‘‘ ऊँट दादा यदि बुरा न मानो तो एक बात कहूँ’’ सियार ने उससे पूछा।

ऊँट को तो सियार की चालाकी मालूम नहीं थी। उसने झट से हाँ कर दी।

तब सियार कहने लगा। ऊँट दादा नदी के उस पार के खेतों में खरबूजे की अच्छी फसल गली है। मुझे यह बात अच्छी तरह मालूम है। यदि तुम चाहो तो हमें खूब मीठे-मीठे खरबूजे खाने को मिलेंगे।

‘‘इसमें मेरे चाहने न चाहने की क्या बात है? ऊँट ने पूछा।

तब सियार भोली सूरत बनाकर बातें बनाने लगा दादा, तुम्हें पता ही है मैं ठहरा कमजोर नदी पार नहीं कर सकता। यदि तुम चाहो तो मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर नदी पार करा सकते हो। फिर तो मजे ही रहेंगे।

सियार की बात सुनकर ऊँट ने हामी भर दी।  दोनों ने फैसला किया कि आधी रात को नदी पार की जायेगी।

आधी रात वे दोनों नदी के किनारे पहुंचे। सियार ऊँट की पीठ पर बैठा और ऊँट ने नदी पार कर ली।

इसके बाद वे खेतों में पहुंचे। खेतों में पहुंचकर सियार ने फुसफुसाते हुए कहा- ऊँट दादा, खूब खाओ, खरबूज किन्तु आवाज न हो। नहीं तो खेत का मालिक जाग जायेगा और हमारी जमकर पिटाई कर देगा।

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योजनानुसार दोनों सावधानी पूर्वक खरबूजे खाने लगे। सियार ठहरा छोटे पेट वाला। उसका पेट जल्दी ही भर गया। मुझे अब हुआंस आ रही है। मैं तो अब हँुआ -हँुआ करूँगा। तब ऊँट ने कहा- थोड़ी देर रूक जाओ भैया। कम से कम दस मिनट और तब तक मेरा पेट भी भर जायेगा।

सोने की चाबी।

लेकिन सियार था स्वार्थी कब मानने लगा। वह जोर-जोर से हुंआ-हुंआ करने लगा। सियार की इस हुआंस से खेत के मचान पर सोये मालिक की नींद टूट गयी।

अपने खेत में ऊँट को खरबूजा खाते देखकर किसान क्रोधित हो उठा। उसने लाठी उठाई और ऊँट पर भिड़ पड़ा। सियार छोटा और फुर्तीला था। वह दौडकर एक झाड़ी में छुप गया।

अपनी फसल की तबाही का बदला उस किसान ने ऊँट की जोरदार पिटाई करके निकाला। उसने ऊँट की इतनी पिटाई की कि उसकी पीठ जगह-जगह छिल गई थी। पीठ से खून रिसने लगा। वह वहां से नदी की ओर भाग चला।

ऊँट तब नदी के किनारे पहुंचा तो वहां पर पहले से ही आया सियार मिला। सियार को देखकर ऊँट की आँखों में खून उतर आया। फिर भी वह शान्त ही रहा।

उसके पीठ से खून रिसता देखकर सियार ने चापलूसी करनी शुरू कर दी। ‘बड़ा बेरहम’ है वह किसान। उसने कैसी गति कर दी है आपकी’ ऊँट कुछ नहीं बोला और नदी में उतर गया। उसके उतरते ही सियार फुर्ती से उसकी पीठ पर चढ़ गया। ऊँट चुप ही रहा। 

डिबिया में कौन

तैरते-तैरते नदी के ठीक बीच में पहुंचकर कहने लगा। सियार भाई, अब तो मुझे इस नदी में लोटने की इच्छा हो रही है क्या? ऊँट की बात सुनकर सियार का मुंह खुला ही खुला रह गया। वह गिड़गिड़ाने लगा। ‘दादा मैं तो डूब जाऊँगा।’’ ऐसा करो पहले मुझे नदी पार करा दो फिर लोटते रहना।’’

ऊँट ने कहा कौन किसी परवाह करता है भाई। मेरे कहने पर तुम्हारी हुआंस नहीं रूक सकी तो तेरे कहने पर मेरी लोटास कहां रूक सकती है।

इतना कहने के बाद ऊँट नदी में उलट-पुलटकर लोटने लगा। इस लोटम पोट में सियार चिल्लाते हुए नदी की तेज धारा में गिर पड़ा। नदी के तेज बहाव में जब सियार डूब गया। तब ऊँट नदी पार करके अपने गांव पहुंच गया।

दोस्तो! स्वार्थी लोगों का यही हाल होता है जैसे सियार का हुआ। अतः स्वार्थ पन को त्याग देना चाहिए।  

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