शुक्रवार, 18 जून 2021

Best Hindi Story Phoolon Vaalee Raajakumaaree|फूलों वाली राजकुमारी हिन्दी कहानियाँ

Best Hindi Story Phoolon Vaalee Raajakumaaree|फूलों वाली राजकुमारी हिन्दी कहानियाँ
Best Hindi Story Phoolon Vaalee Raajakumaaree|फूलों वाली राजकुमारी हिन्दी कहानियाँ

 फूलों वाली राजकुमारी

बहुत पुरानी बात है। किसी गाँव में पति पत्नी रहा करते थे। वे बहुत भले थे। गाँव भर के दुःख में दुखी और सुख में खुशी से झूम उठते थे।

वे दोनों छोटे से झोंपड़े में रहते थे। आँगन के आधे हिस्से को गोबर-मिट्टी से लीप देते और आधे में आलू, शकरकंद, मूंगफली तथा दूसरी सब्जियाँ उगाते। साल भर तक वे यूँ ही अपना गुजारा कर लिया करते।

परोपकार का पौधा

एक दिन की बात है, बहुत सवेरे तारों की छाँह में पत्नी झोपड़ी से बाहर निकली। उसने देखा कि एक सफेद, खूबसूरत बिल्ली कचनार के पेड़ तले दुबकी बैठी है। वृद्धा ने उसे पुचकारा तो वह उसके पांवों से लिपट गई।

पौ फटने प वृद्धा पड़ोसी झोंपड़ी से दूध-चावल ले आई। वृद्ध दम्पत्ति ने कभी किसी के सामने हाथ नहीं पसारा था, पर सुन्दर बिल्ली के लिए वे किसी न किसी तरह दूध का जुगाड़ करने लगे।

इसी तरह समय गुजरता गया। सर्दी-गर्मी, पतझड़-वसंत आ आकर लौटने लगे। उन तीनों की खुशी का ठिकाना नहीं था, पर बिना काम धाम के कैसे चलता? बुढ़ापे के कारण दोनों को चलने फिरने में भी कठिनाई होने लगी। बिल्ली भी भूखी रहने लगी। वह अपने माता पिता के कष्ट को देख नहीं सकती थी।

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‘मैं भी जरा घर से बाहर खुली हवा में हो आऊं। -बिल्ली ने सोचा। गली के कुत्तों और दूसरे जानवरों से बचती-बचाती वह घने जंगल में जा पहूंची। उसने झरने का ताजा जल पिया और देखते ही देखते सुन्दर कन्या में बदल गई।

वह अपने माता-पिता के घर जा पहुँची। बोली- ‘‘ अब मैं आपकी सेवा करूँगी।’’ उन दोनों को कुछ समझ में नहीं आया। अपना पेट भरना मुश्किल हो गया है। अब इस तीसरे प्राणी का क्या होगा? वे दोनों सोच में डूब गए। बिल्ली के एकाएक गायब हो जाने से भी वे परेशान थे।

वह क्या जहाँ-जहाँ जाती, आँगन में फूल झरने लगते। फूलों की डलिया लिए वह बाजार जाती। फूल बेचकर पैसों से खाने-पीने का सामान खरीदती और शाम को घर लौट आती। इस तरह तीन प्राणियों के परिवार की दशा धीरे-धीरे सुधरने लगी। इतने सुन्दर फूल गाँव भर में कहीं नहीं थे। मजे की बात यह कि बिना बीज खाद पानी के फूलों की खेती हुआ करती थी।

‘‘बेटी, तू कौन है? कहाँ से आई है?’’ वृद्ध पति-पत्नी पूछते।

‘‘मैं बेटी हूँ आपकी। इससे ज्यादा कुछ जानिए भी मत।’’ - वह जवाब देती।

हीरा ने कान पकड़े

खाना खाकर वह अपने झोपड़ी में घूसती तो सवेरे निकलती। सवेरे के साथ ही रंग-बिरंगे खुशबूदार फूलों का सिलसिला शुरू हो जाता। उसने माता-पिता से कह रखा था कि उसकी असलियत जानने की कोशिश न करें। पर उन्हें सब्र कहाँ।

एक बार आधी रात को उन दोनों ने सुराख से झोपड़ी में झांका उन्होंने देखा कि लड़की के स्थान पर वहीं सफेद बिल्ली औंधे मुँह पड़ी है। उनके देखने की देर थी कि बिल्ली एक संुदर राजकुमारी बन गई।

 मनुष्य अपना स्वामी स्वयं


-‘‘आपने मेरा असली रूप देख लिया है। इसलिए अब मैं अपने फूलों के देश जाऊँगी। मैं आपकी सहायता करने चुपके-चुपके यहाँ आई थी।’’

उसके जाने की बात सुनकर माता पिता फूट-फूटकर रोने लगे। पर अब क्या हो सकता था।

‘‘चिन्ता न करें। आपके आंगन में हमेंशा रंग -बिरंगे फूल खिलते रहेंगे। आपकी सेवा का बदला नहीं चुका पाऊँगी मैं।’’-इतना कहते ही वह राजकुमारी तेज हवा में झोंके पर सवार होकर अपने देश चली गई। वह गाँव ‘फूलों वाला गाँव’ के नाम से जाना जाने लगा।

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