शुक्रवार, 18 जून 2021

Short Stories In Hindi Putaliyaan Bolee | पुतलियाँ बोली हिंदी में लघु कथाएँ

Short Stories In Hindi Putaliyaan Bolee |  पुतलियाँ बोली हिंदी में लघु कथाएँ
Short Stories In Hindi Putaliyaan Bolee |  पुतलियाँ बोली हिंदी में लघु कथाएँ

 पुतलियाँ बोली

प्राचीन काल में वीरपुर नाम का एक नगर था। वहाँ के राजा थे वीरभद्र। वीरभद्र अपने पूर्वजों की तरह न्यायप्रिय, बुद्धिमान एवं प्रजापालक थे। उनके राज सिंहासन में दो पुतलियाँ लगी हुई थीं। एक का नाम था रूपानी और दूसरी का कल्याणी। 

रूपानी राजा से हमेशा सौन्दर्य का बखान करती और कल्याणी प्रजा के हित की बात राजा को बताया करती थीं दोनों पुतलियाँ की आपस में बिलकुल नहीं निभती थी। वे एक-दूसरे की काट में लगी रहती थीं। रूपानी हमेशा राजा को समझाने की कोशिश करती-‘रूप और सौंदर्य ही दुनिया में सबसे अच्छे हैं। एक राजा को इन्हीं में ज्यादा समय लगाना चाहिए।’ 

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कल्याणी गुणों का बखान करती। वह गुणों को रूप से श्रेष्ठ बतलाती। राजा दोनों की बातें सुनकर, निर्णय अपनी बुद्धि और विवेक से लिया करते थे। वह हमेशा चतुर सभासदों की सलाह लेकर ही काम करते थे।

कुछ समय बाद वीरभद्र बहुत बीमार पड़े। अपना आखिरी समय जान, उन्होंने अपने बेटे छविप्रिय को बुलाकर कहा-‘‘बेटा, यह मेरा आखिरी समय है। अब सिंहासन पर तुम्हें बैठना है। तुम्हें एक जरूरी बात बता रहा हूँ। तुम इन दोनों पुतलियाँ में से कभी किसी का अनादर मत करना। इन दोनांेे में हमेशा संतुलन बनाए रखना।’’ कुछ दिन बाद राजा वीरभद्र स्वर्ग सिधार गए।

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वीरभद्र के राजसिंहसन पर छविप्रिय आसीन हुए। वह बड़े ही निरंकुश और विलासी थे। हमेशा राग-रंग में डूबे रहते थे।

काफी दिनों बाद छविप्रिय पहली बार राज दरबार में आए। वह सिंहासन पर बैठे, तो कल्याणी बोली-‘‘ राजन्, आप बहुत अधिक विलासी होते जा रहे हैं। राग-रंग और नृत्य संगीत से ही राजकार्य नहीं चलता। आप अपने चतुर सभासदों की भी सलाह नहीं मान रहे हैं। गुणों का सम्मान करना सीखिए। अपने पिता की बातें याद रखें।’’

राजा को उसकी यह बात अच्छी न लगी। वह कुछ बोलना चाहते थे, तभी रूपानी बोल पड़ी-‘‘राजन्, आप कल्याणी की बातें में न आइए। यह हमेशा गुणों का ही बखान करती रहती है। इसे यह नहीं मालूम कि सौंदर्य का जीवन में कितना महत्व है। सुंदर चीजें ही तो आनन्द और सुख प्रदान करती हैं। बिना इनके जीवन नीरस हो जाता है।’’

राजा बोंला-‘‘तुम ठीक कहती हो। सौन्दर्य के बिना जीवन बिलकुल उजाड़ लगता है। मैं राजमहल को संुदर ढंग से सजाऊँगा। राज वाटिका के कंटीले पौधों को उखाड़, सुन्दर-सुन्दर पौधे लगवाऊँगा।’’

कुछ दिनों बाद जब राजा फिर दरबार में आए, तो दरबार की रौनक ही बदल गई थी। बड़े खुश थे राजा। वह ज्यों ही सिंहासन पर बैठे, कल्याणी बोली-‘‘राजन्, आपका एक ओर ही झुकाव ठीक नहीं। सौंदर्य के साथ-साथ गुणों का भी सम्मान होना चाहिए। वर्ना राज्य पर विपत्ति घिर आएगी।’’

कल्याणी की बात राजा को फिर अच्छी न लगी। वह कुछ जवाब देते, उसके पहले ही राजवैद्य बोल पड़े-‘‘हाँ, राजन्, कल्याणी ठीक कहती है। आप उसकी बातों पर भी विचार कीजिए।’’

 अनोखा बाग

राजा ने गुस्से में कहा-‘‘तुमसे कौन सलाह माँग रहा है? बीच में बोलकर तुमने भारी अपराध किया है। तुम्हें देश से निकाल दिया जाता है।’’ राजा के हुक्म पर सिपाहियों ने राजवैद्य को देश की सीमा से बाहर कर दिया।

संयोग की बात, दूसरे ही दिन राजवाटिका में टहलते हुए राजकुमार को एक साॅप ने डस लिया। बहुत उपचार हुआ, किन्तु उसे कोई बचा न सका।

पुत्रशोक से दुखी राजा दरबार में पहुँचे। सिंहासन पर बैठना चाहा, तभी कल्याणी बोली-‘‘राजन्, देख लिया, मेरी बात न मानने का परिणाम। अगर वाटिका से सारे कंटीले पौधों को न हटाया गया होता, तो साॅप वाटिका में प्रवेश ही न कर पाता, क्योंकि उनमें बहुत से ऐसे पौधे भी थे, जिनकी महक से साॅंप दूर भागता है। 

साॅप के डसने के बाद भी राजकुमार को मृत्यु से बचाया जा सकता था, मगर आपने तो राजवैद्य को देश निकला दिया था। राजवैद्य के पास विषधर से बचाने की अचूक औषधियाँ थीं। मैं बराबर आपसे कहती रही हूँ, गुणों को महत्व दीजिए। मगर आप सुनते ही नहीं।’’ कहकर पुतली मौन हो गई।

सत्य बोलो

अच्छा मौका देख, दूसरी पुतली रूपानी बोली-‘‘कल्याणी, ऐसे शोक के समय में तुम राजा का उपहास कर रही हो। यह अच्छी बात नहीं।’’

राजा पहले से ही झंुझलाएं हुए थे। रूपानी की बातों ने आग में घी का काम किया। गुस्से में उन्होने कल्याणी से कहा-‘‘आज के बाद तुम मुझसे बात न करना।

राजा के निर्णय से सारे सभासद चकित रह गए। कुछ न राजा को अपना निर्णय वापस लेने की सलाह दी, लेकिन राजा ने किसी की एक न सुनी। कल्याणी उसी दिन से चुप हो गई।

अब राजा के ऊपर रूपानी का एकाधिकार था। राजा दिन-रात राग-रंग में डूबे रहने लगे। बूढ़े सभासदों को दरबार से निकाल, उनकी जगह नौजवान एवं रूपवान सभासदों की भर्ती की गई। यहाँ तक कि राजमहल के पुराने और विश्वासपात्र दास-दासियोें की भी छुट्टी कर दी गई।

इन सारी बातों की सूचना पड़ोसी राजा को मिली। वह बड़ा खुश हुआ। उसकी वीरपुर से पुरानी दुश्मनी थी। कई बार दोनों में युद्ध हो चुका था। बदला लेने का अच्छा अवसर देख, पड़ोसी राजा ने वीरपुर पर हमला कर दिया।

वीरपुर के राजा तो रंगरेलियों में डूबे थे। सेना में भी ज्यादातर अनुभवहीन और नए सिपाही ही थे। पुराने योग्य एवं लड़ाकू सैनिकों की छुट्टी कर दी गई थी। इसके अतिरिक्त वीरपुर से निकाले गए बहुत से दास-दासियों से भी बहुत सारी गुप्त जानकारियां शत्रु ने प्राप्त कर ली थी।

हमने की खबर सुन, राजा छविप्रिय घबरा गए। क्या करें। सोचने लगे-‘‘शायद कल्याणी पुतली के नाराज होने से ही विपदा आई है।’ भागे-भागे सिंहासन के पास गए। क्षमा माँगकर कल्याणी से उपाय पूछा। पुतली बोली-‘‘राजन्, राग-रंग में डूबे राजा का यही हाल होता है। अब भी भला चाहो, तो अपने पुराने सभासदों, अनुभवी मंत्रियों और भूतपर्व सेनापति से सलाह लो। मेरी मानो, आधी रात होने पर शत्रु पर जोरदार हमला करो। शत्रु आपसे कम ताकतवर है। साहस से काम लो।’’

जैसा संग वैसा रंग

राजा ने वहीं किया। रात में अचानक हमले से शत्रु घबरा गए। सेना के पैर उखड़ गए। इस तरह आई विपत्ति टल गई। अब राजा की समझ में आ गया कि अनुभवी सभासदों से सलाह लेना क्यों जरूरी है? बस, उसी दिन से राजा, प्रजा के कल्याण और राज को सुदृढ़ करने मे जुट गए। पुतलियाँ अब भी उनसे अपनी बातें कहतीं, मगर राजा उनकी बातें सुनकर अब अपने विवेक से काम लेते थे।

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