शुक्रवार, 18 जून 2021

Best Hindi Kahani Anokha Baag- अनोखा बाग बेस्ट हिन्दी कहानी

Best Hindi Kahani Anokha Baag- अनोखा बाग बेस्ट हिन्दी कहानी
Best Hindi Kahani Anokha Baag- अनोखा बाग बेस्ट हिन्दी कहानी

 अनोखा बाग

गंगा नदी के तट पर एक राज्य था श्यामपुर। एक दिन वहाँ के राजा वीरभद्र का दरबार लगा था। राजा सोने के सिंहासन पर एवं उनके मंत्री चांदी के आसन पर बैठे थे। राजा के पीछे खड़ी दासियाँ चंवर डुला रही थीं। राज्य की समस्याओं पर विचार करने के बाद राजा वीरभद्र ने अपने मंत्री से पूछा-‘‘मंत्रिवर, तीनोें लोकों में सबसे सुन्दर बाग किसने लगवाया है?’’

‘‘राजन इंद्रलोक में नंदन-कानन नामक बाग तीनों लोकों में सबसे सुन्दर बाग है। वहाँ सभी देवी-देवता भ्रमण करने के लिए आते है।’’ मंत्री ने बताया।

राजा ने आदेश दिया-‘‘मंत्रिवर, मैं अपने राज्य में नंदन-कानन से भी सुन्दर एक बाग लगाना चाहता हूँ। आप लोग एक अनुपम बाग लगाने का प्रबंध कीजिए।’’

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राजा की आज्ञा के अनुसार देश-विदेश से पौधे मंगवाकर लगवाए गए। उनकी सुरक्षा के लिए कंटीली बाड़ लगवा दीं लेकिन आश्चर्य, शाम को पौधे लगवाए गए और सुबह तक सारे पौधे लापता हो गए। कंटीली बाड़ ज्यों की त्यों लगी रही।

क्रोध में आकर राजा ने अपने गुप्तचरों को इसका पता लगाने के लिए कहा, लेकिन पौधों के गायब होने का रहस्य कोई नहीं जान सका। राजा ने कई बार बाग लगवाने का प्रयास किया, पर बाग नहीं लगा। राजा मन ही मन उदास रहने लगे।

राजा वीरभद्र के चार पुत्र थे। अपने पिता की उदासी का कारण जानकर उनके तीन पुत्र भानुप्रताप, चन्द्रप्रताप और सुरेन्द्र प्रताप ने बारी-बारी से बाग लगाने का प्रयास किए लेकिन नतीजा कुछ न निकला। शाम को पौधे लगवाए गए और वे सुबह तक गायब हो गए। अंत में सबसे छोटे राजकुमार उदयप्रताप ने कहा-‘‘पिता जी, मुझे भी एक मौका दीजिए। मैं एक बार प्रयास करना चाहता हूँ।’’

राज वीरभद्र ने उदास स्वर में कहा-‘‘जिस काम को मैं और तुम्हारे बड़े भाई नहीं कर सके, उसे तुम कैसे पूरा करोगे?’’

राजा की बात सुनकर मंत्री ने कहा-‘‘राजन, छोटे राजकुमार का मन छोटा मत कीजिए। एक बार उन्हें भी कोशिश करने दीजिए।’’

मंत्री की सलाह मानकर राजा ने उसे आज्ञा दी-‘‘जाओ, एक बार तुम भी प्रयास करके देख लो।’’

लालची साधु और धूर्त नाई


छोटे राजकुमार उदयप्रताप ने देखा था कि उसके पिता और बड़े भाई बाग की सुरक्षा का भार सिपाहियों को सौंपकर स्वयं महल में चैन की नींद सो जाते थे। उसने सबसे पहले सिपाहियों की छुट्टी कर दी और स्वयं बाग की रखवाली करने की योजना बनाई।

बाग में पौधे लगवाकर उसने एक छोटी सी झोंपड़ी बनवाई और रात में उसमें स्वयं छिपकर बैठ गया। बाहर उसने जल भरी एक नांद रखवा दी। काफी रात बीतने पर उसे थोड़ी झपकी आने लगी। उसने बाहर निकलकर अपनी आँखों पर ठंडे पानी के छींटे मारे, फिर अन्दर जाकर बैठ गया।

ठीक आधी रात के समय आंधी जैसी सांय-सांय की आवाज सुनकर उसके कान चैकन्ने हो गए। उसने कौतुहलवश झोंपड़ी के बाहर झांगा। हवा एकदम शांत थी। आकाश में चांद-तारे चमक रहे थे। 

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स्वच्छ चांदनी में उसने अचानक देखा कि दो पंखों वाला घोड़ा धीरे-धीरे आसमान से नीचे उतर रहा है। बाग की धरती पर पैर रखे बिना ही उसने ऊपर ही ऊपर पौधों को चट करना शुरू कर दिया। पौधों का सफाया करने के बाद एक नांद में पानी देखकर घोड़े का मन ललचाया। उसने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई। खा-पीकर मस्त होने के बाद घोड़े ने सोचा-‘ अभी तो आधी रात बाकी है, क्यांे न थोड़ी देर विश्राम कर लूँ? सुबह होने से पहले उड़ जाऊँगा।’

यही सोचकर घोड़ा जमीन पर उतरा और खड़े-खड़े झपकी लेने लगा। छोटा राजकुमार छिपकर घोड़े की हर गतिविधि को देख रहा था। घोड़े को ऊंघता हुआ देखकर वह सधे कदमों से आगे बढ़ा और उछलकर घोड़े की पीठ पर सवार हो गया। ज्यों ही राजकुमार घोड़े की पीठ पर बैठा, घोड़ा तेजी से आसमान में उड़ चला। घोड़े की पीठ पर न तो गद्दी थी और न ही उसके मुँह में लगाम थी। 

दुर्बलता का पाप


छोटे राजकुमार ने घोड़े के अयाल को कसकर पकड़ लिया। घोड़ा रातभर आसमान में चक्कर काटता रहा और राजकुमार भी उसकी पीठ से चिपका रहा। जब पूरब के आकाश में सूरज की लाली छाने लगी, तो घोड़े ने कहा-‘‘भई, दया करके मेरी पीठ से उतर जाओ। सुबह होने से पहले यदि मैं अपने अस्तबल में नहीं लौट सका, तो मुझे कड़ी सजा मिलेगी।’’

छोटे राजकुमार ने कहा-‘‘पहले बताओ कि तुम कौन हो और मेरे बाग को क्यों नष्ट करते हो?’’

घोडे़ ने बताया-‘‘मैं इंद्रलोक का काला घोड़ा हूँ। मुझे पता चला कि राजा वीरभद्र मृत्युलोक में नंदन-कानन से भी सुन्दर बाग लगाना चाहते हैं। वह बाग लगाने से सफल हो जाते, तो देवराज इन्द्र का अपमान हो जाता, इसलिए मैं तुम्हारे बाग को नष्ट कर देता था।’’

छोटे राजकुमार ने कहा-‘‘तुम बडे़़ दुष्ट हो। मैं तुम्हें अपने अस्तबल में बाँधकर रखूँगा।’’

घोड़े ने कहा-‘‘यदि तुम मुझे छोड़ दोगे, तो मैं तुम्हारी दो मनोकामनाएं पूरी कर दूँगा।’’

 दुष्टरानी और छोटा भाई


छोटे राजकुमार ने कहा-‘‘ऐसी बात है तो नंदन कानन से सुन्दर न सहीं, परन्तु मेरे बाग को तुम रातो-रात नंदन-कानन जैसा बना दो। मेरी दूसरी कामना है कि जब मैं बुलाऊँ, तो तुम आकर मेरी मदद करो।’’

घोड़े ने कहा-‘‘ऐसा ही होगा। तुम्हें मेरी केवल एक शर्त मानी पड़ेगी। यदि तुमने मेरा रहस्य किसी को बता दिया, तो मैं फिर कभी नहीं आऊँगा।’’

छोटे राजकुमार ने घोड़े की शर्त मान ली। घोड़े ने राजकुमार को बाग में उतारा और वह तेजी से आसमान की ओर उड़ गया। छोटे राजकुमार ने अपना बाग देखा, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। ऐसा बाग न तो उसने कहीं देखा था और न ही इसके बारे में कहीं सुना था। बाग में आम, अमरूद, कटहल, बेर, सेब, नारियल, केला, पपीता, हर तरह के पेड़ लगे थे। पेड़ों पर हर मौसम के फल लगे थे। कुछ फल कच्चे, कुछ फल पके और कुछ भूमि पर पड़े थे। गिलहरियाँ पके फलों को कुतर-कुतरकर खा रहीं थी।

एक ओर गेंदा, गुलाब, चंपा, गंधराज, हरिसंगार, बेली, जूही, चमेली और रजनीगंधा के फूल खिले थे। फूलों पर रंग बिरंगी तितलियाँ मंडरा रही थीं। भौंरे गुंजार कर रहे थे। बाड़ पर अंगूर की तलाएँ छाई थीं। तालाब में कमल के फूलों के बीच हंसों के जोड़े तैर रहे थे।

छोटे राजकुमार ने घूम-घूमकर बाग देखा और सूरज निकलने से पहले अपने महल में जाकर सो गया। उसने बाग के बारे में किसी से कुछ नहीं कहा। 

सुबह भ्रमण के लिए निकले लोंगों ने बाग देखा, तो उनकी आँखें फटी रह गई। लोगों ने पहले छककर फल खाए, तब जाकर राजा को इस बात की सूचना दी। राजा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने स्वयं आकर बाग देखा, तो वह आँखें मलते रह गए।

राजा वीरभद्र छोटे राजकुमार के इस काम से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने उसे राजगददी सौंपने की घोषणा कर दी। राजा की घोषणा सुनकर तीनों बड़े राजकुमारों ने राज्य छोड़ने का फैसला कर लिया। छोटे राजकुमार को इस बात का पता चला, तो उसे बहुत दुःख हुआ। उसने अपने पिता से जाकर कहा-‘‘पिताजी, नियम के अनुसार तो सबसे बड़े भाई को ही राजा बनने का अधिकार मिलना चाहिए।’’

राजा ने कहा-‘‘नहीं बेटे, सबसे योग्य व्यक्ति को ही राजा बनने का अधिकार मिलना चाहिए। तुमने अद्भुत बाग लगाकर अपनी योग्यता सिद्ध कर दी है।’’

करेले

छोटा राजकुमार बोला-‘‘पिता जी यह सब तो काले घोड़े का चमत्कार है।’’

असावधानी में घोड़े का नाम बोलकर छोटे राजकुमार को अपनी भूल का एहसास हुआ। वह फूट-फूटकर रोने लगा। राजा ने उससे रोने का कारण पूछा, तो उसने सुबकते हुए बताया- ‘‘पिताजी, मैं शर्त हार गया। अब काला घोड़ा कभी नहीं आएगा।’’

इसके बाद राजकुमार उदयप्रताप ने अपने पिता को काले घोड़े की पूरी कहानी सुनाई। दरबार में बैठे मंत्री ने भी कहानी सुनी। पूरी कहानी सुनकर मंत्री ने कहा-‘‘राजकुमार, काले घोड़े का न आना ही ठीक है। जो लोग हमेशा दूसरों का मुँह ताकते हैं, वे आलसी हो जाते हैं। आपने देखा कि महाराज और आपके बड़े भाई दूसरों के भरोसे पौंधों के गायब होने का रहस्य नहीं जान सकें, जबकि आपने अपने बल पर सफलता प्राप्त कर ली। इसी प्रकार भविष्य में भी आपको सफलताएँ मिलेंगी।’’

 गुस्सा क्यों करते हैं आप?


मंत्री ने समझाने से छोटा राजकुमार प्रसन्न हो गया। अंत में उसने राजा से कहा-‘‘पिताजी, इस कहानी से मेरे भाइयों को भी अपना काम स्वयं करने की शिक्षा मिल गई होगी। अब आप बड़े भाई को राज सिंहासन पर बैंठने की आज्ञा देने की कृपा करें। मैं सब प्रकार से उनकी मदद करूँगा।’’

छोटे राजकुमार की बुद्धि एवं भाईयों के प्रति उसके मन में प्रेम भाव देखकर राजा वीरभद्र अत्यन्त प्रसन्न हुए। राजा वीरभद्र ने छोटे राजकुमार की सलाह के अनुसार सबसे बड़े राजकुमार भानुप्रताप को राजा बनाने की घोषणा कर दी। छोटे राजुमार के व्यवहार से चारों भाइयों का परस्पर प्रेम और बढ़ गया।

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