शुक्रवार, 18 जून 2021

Shahad Bhare Papeete Moral Stories in Hindi- शहद भरे पपीते नैतिक कहानियाँ हिंदी में

नैतिक कहानियाँ हिंदी में-Moral Stories in Hindi

      हम इस लेख में Moral Stories in Hindi के बारे में बताने वाले है। जिसको आपने अपने माता-पिता या दादा-दादी से जरूर सुना होगा, यह कहानी बहुत मनोरंजनपूर्ण, शिक्षावर्धक, ज्ञानवर्धन तथा उत्साहित करने वाली है। नैतिक कहानियाँ हिन्दी में पढ़कर आपको न सिर्फ मनोरंजन मिलेगा साथ ही साथ अच्छे विचार, मनोबल तथा आत्म संयम भी बढेगा। आईए पढ़ते है।

Shahad Bhare Papeete Moral Stories in Hindi-  शहद भरे पपीते नैतिक कहानियाँ हिंदी में
Shahad Bhare Papeete Moral Stories in Hindi-  शहद भरे पपीते नैतिक कहानियाँ हिंदी में

 शहद भरे पपीते

             हिमालय की तराई के जंगल में एक बंदर व एक जंगली बिलाव रहते थे। दोनों में पक्की मित्रता थी। बिलाव पेड़ में बनी कठोर में रहता था और बंदर उसी पेड़ की डालियों पर बसेरा डाले था। एक दिन शाम को बैठे-बैठे दोनों गप्पे मार रहे थे। गप्पे धीरे-धीरे बहस में बदल गई। बिलाव कह रहा था- ‘‘शारीरिक चोट, झूठ से ज्यादा बुरी है। इससे दर्द होता है और झूठ बोलने से कोई दर्द नहीं होता।’’ जबकि बंदर का कहना था-‘‘ शारीरिक चोट तो दवा लगाने से ठीक हो सकती है किन्तु झूठ से हुए नुकसान की पूर्ति नहीं हो सकती।’’

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             दोनों की बात का निर्णय कैसे हो इसलिए तय हुआ कि हम खुद अपनी-अपनी बात को सिद्ध करेंगे। तब बंदर ने कहा-‘‘ अच्छा बिल्ले भाई! पहले तुम ही अपनी बात सिद्ध करो।’’ बिल्ले ने कहा-‘‘ठीक है।’’ और उसने अपने पंजे खोले तथा बंदर को जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। उसके तीखे नाखूनों से बंदर के गाल छिल गए और खून रिस पड़ा।

             लेकिन बंदर ने दर्द की परवाह नहीं की। उसने अपनी चोटों पर दवा लगा ली और कहा-‘‘ अब मैं अपनी बात कुछ दिनों में सिद्ध कर दूँगा।’’ दो दिनों में बंदर की चोट ठीक हो गई। उसके चेहरे पर कोई निशान भी नहीं रहा। उसने बहुत सारे पपीते जमा किए। उनमें ऊपर से बारीक छेद करके शहद भर दिया। फिर जंगल से बाहर मैदान के बीच एक नीम के पेड़ की पतली-पतली डालियों पर इन्हें इस तरह लटका दिया जैसे उसी पर उगे हों। 

             इतना सब कुछ करने के बाद वह बिलाव के पास गया और कहा-‘‘मैंने नीम के एक पेड़ पर शहद भरे पपीते लगे देखे हैं।’’ बंदर को पता था कि बिलाव को पपीते बहुत पसंद है और शहद भरे पपीते सुनकर बिलाव के मुँह में पानी भर गया। उसने आतुरता से पूछा-‘‘ कहाँ? कहाँ है वो पेड़ बंदर भाई? मुझे तो कभी जंगल में ऐसा पेड़ दिखाई ही नहीं दिया। लेकिन फिर भी यह कैसा पेड़ है जहाँ ऐसे पपीते लगते हैं?’’ बिलाव ने ऐसा कहते हुए शंका भी व्यक्त की।’’

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             बंदर ने गुस्से से कहा-‘‘ लगता है तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं। आओ, मैं तुम्हें खुद पेड़ तक ले चलता हूँ। तुम खुद अपनी आँखों से देख लेना और साथ ही जी भर के खा भी लेना। खूब सारे पपीते लगे हैं वहाँ पर।’’ वह बिलाव को जंगल के बाहर मैदान में उस नीम के पेड़ के पास ले गया। बिलाव देखते ही पेड़ पर चढ़ गया। एक पपीता तोड़कर खाने लगा। बंदर को नीचे खड़े देखकर बोला- ‘‘तुम भी आ जाओ।’’ बंदर ने कहा-‘‘ नहीं, मेरा तो पेट भरा है। मैं तो वापस जा रहा हूँ।’’ और बंदर वापस चला गया।

             बिलाव ने सोचा-‘‘चलो अच्छा ही हुआ। मैं तो दो-तीन दिन इसी पेड़ पर रहूँगा और मौज करूँगा।’’ बंदर वहाँ से लौटकर सीधे भालू के पास पहुँचा। भालू को भी उसने कहा-‘‘ नीम के एक पेड़ पर मैंने शहद भरे पपीते लगे देखे है।’’ शहद का नाम सुनते ही भालू के मुँह में पानी भर आया। उसने उत्सुकतापूर्वक कहा- ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? नीम के पेड़ पर पपीता और वह भी शहद भरा। समझ में नहीं आया कुछ। यदि ऐसा ही है तो फिर यह मजेदार बात है। कहाँ है ऐसा चमत्कारी पेड़?’’

             बंदर ने झट कहा-‘‘ यह सब कुछ कैसे हुआ, मुझे तो पता नहीं। लेकिन आप चाहो तो मैं आपको पेड़ दिखा सकता हूँ।’’ भालू ने तुरन्त हामी भर दी। तब बंदर उसे पेड़ की तरफ ले गया जहाँ बिलाव बैठा पपीता खा रहा था। भालू को दूर से शहद की खुशबू आ गई और बंदर ने उसे दूर से ही पेड़ दिखाकर कहा-‘‘वो रहा पेड़ आप चले जाइए।’’ भालू तेजी से चलकर पेड़ के पास पहुँचा। वहाँ बिलाव को पपीता खाते देख गुस्से से भर गया और गुर्राते हुए पेड़ पर चढ़ गया। 

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             बिलाव डर के मारे पपीता खाना भूल गया और दुबककर बैठ गया। ऊपर चढ़कर भालू ने देखा कि पपीते पतली-पतली डालियों पर लगे हैं तो उसे लगा कि वह अपने भारी शरीर के कारण वहाँ तक नहीं पहुँच सकता। उसका गुस्सा और बढ़ गया। वह वहीं बीच के मुख्य तने पर जहाँ दूसरी डालियाँ फूट रही थीं, जमकर बैठ गया और गुस्से में बोला-‘‘बिल्ले, खैर चाहते हो तो एक-एक पपीता तोड़कर देते जाओ वरना मैं तुमको खा जाऊँगा।’’ बिलाव भी समझ गया कि उसका कहना मानना ही पड़ेगा। वरना नीचे नहीं उतर सकता। साथ ही जितनी देर पपीते हैं, तब तक भालू भी उसे कुछ नहीं कहेगा।

             भालू मजे ले लेकर पपीता और शहद खाता। खत्म होने पर फिर गुर्राने लगता। बिलाव डर से थर्राता, फिर एक पपीता तोड़कर उसे दे देता। इस तरह उस पेड़ पर दोनों को तीन दिन और तीन रात हो गई। बिलाव डर के मारे खुद खाए बगैर शहद भरे पपीते भालू को खिलाता रहा। तीन दिन में भूखा प्यासा बिलाव सूखकर काँटा हो गया। चैथे दिन पाँच-छः भेड़ियों का झुण्ड पेड़ की तरफ आता दिखाई दिया। पपीते भी खत्म हो गए थे और इन भेड़ियोें को दूर से आता देख भालू पेड़ से उतरकर चुपचाप जंगल की ओर भाग गया।

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             भेड़िए पेड़ के नीचे छाया में बैठ गए। बिलाव फिर भी फँसा हुआ था। वह सोचने लगा कि अब यहाँ से ये भालू चला गया, तो उसकी जगह ये गुंडे भेड़िए आ बैठे। भेड़िए पेड़ के नीचे बैठकर बिलाव के नीचे आने का इंतजार कर रहे थे।

             बंदर दूर बैठा यह तमाशा देख रहा था। आखिर वह वहाँ आया। दूर से ही लम्बी छलाँग लगाकर बोला-‘‘ देखो बिल्ले भाई! मैंने अपनी बात सिद्ध कर दी है। तुमने मुझे जो चोट पहुँचाई थी, वह तो दो दिन में ही ठक हो गई। लेकिन मेरे झूठ बोलने से जिस मुसीबत में तुम फँसे हो, उससे तुम अभी तक बाहर नहीं निकल सके।’’

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             बिलाव को सारी बात समझ में आ गई। वह बोला-‘‘ हाँ भाई, तुम्हारी बात सही है। झूठ बोलना शारीरिक पीड़ा पहुँचाने से भी बुरा है। लेकिन अब कैसे भी करके मेरी जान तो बचा लो। भगवान तुम्हारा भला करेगा।’’

             बंदर ने बिलाव को अपनी पीठ पर बिठाया और कहा-‘‘कसकर पकड़ लो।’’ वह तेजी से छलाँग लगाकर उछलता हुआ भेड़ियों की पहुँच से बिल्ले को दूर ले गया। इस तरह बिलाव की जान बच गई। लेकिन बिलाव की जो हालात तीन दिन की भूख-प्यास और डर के मारे खराब हुई थी, उसे ठीक होने में महीनों लग गए।

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