शुक्रवार, 18 जून 2021

Paropakaar Ka Paudha Moral Stories in Hindi (परोपकार का पौधा) Hindi Story

paropakaar ka paudha moral stories in hindi (परोपकार का पौधा)
paropakaar ka paudha moral stories in hindi (परोपकार का पौधा)

 परोपकार का पौधा

एक था सेठ। नाम था करोड़ीमल। जैसा उसका नाम था वैसा ही उसका स्वभाव भी था। वह दिन-रात करोड़पति होने के सपने देखा करता था। पैसों का भूखा और लालची इतना कि एक-एक पैसा जोड़ा करता था। उसके दरवाजे पर यदि कोई साधु संत या जरूरत मंद आ जाता तो वह उन्हें फूटी कौड़ी भी नहीं देता बल्कि उन्हें खरी-खोटी सुनाकर अपने दरवाजे से दुत्कार देता था।

सेठ की पत्नी का स्वभाव सेठ के स्वभाव के बिलकुल विपरीत था। वह दयालु किस्म की एक धर्म परायण औरत थी। सेठ की उपस्थिति में तो वह किसी दीन दुखी की कोई मद्द नहीं कर पाती क्योंकि ऐसा करने पर अपने पति से उसे काफी खरी-खोटी सुननी पड़ती थी। परन्तु जब सेठ अपनी दुकान पर चला जाता और ऐसे में कोई भूख या जरूरतमंद उसके दरवाजे पर आ जाता तो वह उसकी यथासंभव मदद करती थी फिर भी उसके मन में इस बात का सदा अफसोस रहता कि उसका पति धनवान होकर भी जरूरत मंद की सहायता नहीं करता और सांसरिक अपयश का शिकार बनता है।

एक बार सेठ के दरवाजे पर एक साधु आया तब सेठ अपनी दुकान पर था। सेठानी घर में अकेली थी। उसने साधु को अपने घर में आदर के साथ बिठाया फिर उसे स्वादिष्ट भोजन कराया। जब साधु भोजन करके जाने लगा तो सेठ की पत्नी ने साुध को दक्षिणा में कुछ पैसे देकर उसके चरण स्पर्श किए।

साधु ने आशीर्वाद दिया फिर साधु जैसे ही दरवाजे की ओर पलटा उसे दरवाजे पर खड़ा सेठ क्रोधित नजरों से अपनी पत्नी और साधु को घूर रहा था।

जब सेठ की पत्नी ने अपने पति को देखा तो वह घबरा उठी। उसे डर था कि कहीं उसका पति साधु का अपमान न कर दे। अगले ही पल वही हुआ जिसका उसे डर था। सेठ साधु को तिरस्कार की नजरों से देखता हुआ बोला लक्ष्मी! मैंने तुमसे मना कर रखा है न कि ऐसे आदमियों को दान दक्षिणा न दिया करो। ये लोग कामधाम तो कुछ करते नहीं, केवल दूसरों को बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। ये पाखण्डी होते हैं, मेरी खून-पसीने की कमाई ऐसे लोगों पर लुटाने के लिए नहीं है। मैं बड़ी मेहनत से एक-एक पैसा जोड़ता हूँ। अगर तुम मेरी इस खून पसीने की कमाई को इन लोगों पर यूँ ही लुटाती रहीं तो मैं एक दिन कंगाल हो जाऊँगा।

सेठ की पत्नी अपने पति द्वारा साधु के प्रति कहे गए इन अपमानजनक शब्दों को सुन काँप उठी। उसे यह भय सताने लगा कि कहीं साधु उसकी बातों से कुपित होकर उसे कोई शाप न दे दे। परन्तु जब उसने साधु की ओर देखा तो उसे मुस्कराते हुए पाकर वह आश्चर्यचकित रह गई। दूसरी ओर साधु मुस्कराती नजरों से सेठ को देखता हुआ बोला-‘‘बच्चा, तुम्हें दौलत की बहुत चाह है?’’

साधु के इस अप्रत्याशित प्रश्न को सुन पहले तो सेठ अचकचाया फिर कठिनता से बोला ‘हाँ’।

‘‘कितनी दौलत चाहिए तुम्हें?’’

‘‘करोड़ों’’

‘‘क्या करोगे इतनी दौलत कहा?’’

अपने लिए आलीशान महल बनावाऊँगा। आलीशान महल की हीरे, जवाहरातों से सजाऊँगा। अपने लिए सुख और ऐश्वर्य के सारे साधन जुटाऊँगा।

सिर्फ अपने लिए सब कुछ करोगे और औरों के लिए भी? 

‘‘सिर्फ अपने लिए, मैं किसी और के लिए कुछ क्यों करूँ?’’

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अच्छी बात है, साधु अपने होंठो पर एक रहस्यमयी मुस्कान बिखरेता हुआ बोला-‘मैं तुम्हें एक ऐसा उपाय बतलाता हूँ जिससे तुम्हारी यह मनोकामना पूरी हो जाएगी।’’ साधु ने अपने कंधे से लटक रहे झोले से एक बीज निकाला। फिर उसे सेठ की हथेली पर रखता हुआ बोला-‘‘लो यह बीज, इसे अपने घर के पिछवाड़े के बाग में बो देना।’’

इससे क्या होगो? सेठ उत्सुक स्वर में बोला। इससे तुम्हारी करोड़पति होने की मनोकामना पूर्ण होगी। परन्तु यह तभी होगा जब इस बीज से उगे पौधे में फल लगेंगे और इसमें फल कितने दिनों में लगेंगे?

‘‘क्या मतलब?’’

सेठ मैंने जिस पौधे का बीज तुम्हें दिया है उस पौधे का नाम परोपकार का पौधा है। यह पौधा तभी पल्लवित, पुष्पित होगा जब तुम दीन दुखियों की सहायता करोगे। जरूरत मंदों की मदद करोगे। खबरदार यदि तुमने इस पौधे को लगाने के बाद किसी भी दीन दुःखी या जरूरत मंद का दिल दुखाया तो यह पौधा नहीं उगेगा और अगर उग भी गया तो इसमें फल नहीं लगेंगे। कहने के बाद साधु सेठ के जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर वहां से चला गया। सेठ हतप्रभ सा परोपकार के पौधे का बीज हथेली में थामें साधु को जाता हुआ देखता रहा।

उस रात सेठ रातभर ढंग से सो न सका। रह-रहकर साधु की बातें उसे बैचेन कर देती। कभी वह सोचता कि वह साधु झूठा था और कभी उसके अन्दर बैठा पैसे का लालच उसे साधु की बात सच मानने को मजबूर करता। आखिरकार सुबह होते-होते सेठ ने साधु द्वारा दिए गए बीज को अपने बगीचे में बोने का निर्णय कर ही लिया।


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