Teen Varadaan Short Moral Story in Hindi- तीन वरदान hindi story |
तीन वरदान
गोपी एक ईमानदार व परिश्रमी लड़का था। बचपन में ही उसके माँ-बाप गुजर गये थे। वह एक साहूकार के घर नौकरी करता था। घर के सारे काम वह अकेला ही करता था। रोज सुबह सबसे पहले उठ जाता और दिन भर काम करता रहता पर कभी उसके चेहरे पर एक शिकन तक न पड़ती। जब देखों मुस्कराता ही रहता। कितना ही मुश्किल से मुश्किल काम हो कभी किसी काम के लिए मना नहीं करता था।
इस तरह मेहनत और लगन से काम करते-करते एक साल बीत गया पर साहूकार ने उसे तनख्वाह न दी। एक तो साहूकार था बड़ा कंजूस दूसरे उसे यह डर था कि अगर गोपी को उसका वेतन दे दिया तो कहीं यह नौकरी न छोड़ दे। गोपी ने भी कभी तनख्वाह नहीं माँगी और इसी तरह मेहनत और लगन से काम करता रहा। इसी तरह दूसरा साल भी बीत गया।
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पर साहूकार ने तब भी वेतन का कोई जिक्र न किया तो एक दिन गोपी साहूकार के पास गया और बोला-‘‘मालिक, मुझे आपके पास काम करते-करते दो साल से भी ज्यादा हो गये हैं। अब मैं काम करते-करते उकता गया हूँ और नौकरी छोड़ना चाहता हूँ। कृपया मेरा हिसाब कर दीजिए।’’
साहूकार ने सोचा-‘‘गोपी बहुत ही भोला-भाला लड़का है, इसे तो थोड़े से पैसे दे देता हूँ। कुछ कहेगा तो कुछ और दे दूँगा।’’ यही सब सोचते हुए उसने गोपी को तीस रूपये दिये और बोला-‘’यह लो तुम्हारा दो साल का वेतन पन्द्रह रूपये के हिसाब से, अपनी हिम्मत को सराहो जो तुम्हें मेरे जैसा मालिक मिला, वरना इतनी तनख्वाह कौन देता है?’’
सीधा-सादा गोपी कुछ न बोला। चुपचाप पैसे जेब में रखे और अपने मालिक को प्रणाम करके चल दिया। वह बहुत ही खुश था। आज उसकी जेब में पूरे दो साल की कमाई थी। उसने कहा-‘‘अब कुछ दिन आराम करूँगा अभी तो दो साल की कमाई है मेरे पास।’’ जब चलते-चलते वह थक गया तो एक पेड़ की छाँव में बैठकर सुस्ताने लगा। बैठे-बैठे गोपी की आँख लग गई। कुछ ही देर बाद उसने महसूस किया कि कोई उसे हिला रहा है।
गोपी आँख मलते हुए उठ बैठा। सामने फटे पुराने कपड़ों में एक अत्यन्त बूढ़ा व्यक्ति खड़ा था। वह बूढ़ा गोपी को जागते देख बोला-‘‘मैं कई दिनों से भूखा हूँ, बूढ़ा हो गया हूँ, कोई काम नहीं कर सकता, मुझे कुछ पैसे दे दो तो बहुत मेहरबानी होगी।’’
मिला वरदान।
गोपी से उस बूढ़े व्यक्ति की दशा देखी न गयी। उसने तुरन्त जेब से तीस रूपये निकाले और बोला-‘‘बाबा, मेरे पास यह तीस रूपये हैं, मेरे दो साल की कमाई यह आप रख लो मैं तो अभी जवान हूँ फिर कमा लूँगा।’’ यह कहकर गोपी ने तीस रूपये बूढ़े के हाथ पर रख दिये।
बूढ़े व्यक्ति के चेहरे से खुशी दमकने लगी। वह गोपी से बोला-‘‘बेटा, तुम बहुत दयालु हो, भगवान तुम्हारा भला करें। मैं तुम्हें तीन वरदान देता हूँ।’’ यह कहकर उस व्यक्ति ने अपनी झोली में से एक गुलेल और एक बासुँरी निकालकर गोपी को देते हुए कहा-‘‘लो, बेटा यह गुलेल और बाँसुरी दोनों करामाती हैं। इस गुलेल का निशाना कभी नहीं चूकेगा और यह बाँसुरी, जब भी तुम इसे बजाओगे तो सुनने वाले नाचने लगेंगे।
तुम्हारा तीसरा वरदान यह है कि तुम जिससे भी कुछ कहोगे वह तुम्हारी बात जरूर मानेगा।’’ इतना कहकर बूढ़ा व्यक्ति ने जाने कहाँ गायब हो गया।
गोपी खुशी-खुशी आगे चल पड़ा। अभी वह कुछ ही देर गया था कि उसे एक पेड़ के नीचे एक व्यक्ति खड़ा गुलेल से एक चिड़िया का शिकार करने का प्रयास करता नजर आया। गोपी के पास पहुंचने पर वह व्यक्ति गोपी से बोला-‘‘भइया, बहुत देर से इस चिड़िया का शिकार करने की कोशिश कर रहा हूँ, पर हमेशा निशान चूक जाता है। क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो?’’
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गोपी ने अपनी गुलेल निकाली और बोला-‘‘यह कोई मामूली गुलेल नहीं हैं, यह एक जादुई गुलेल है। इसका निशाना कभी नहीं चूकता। मैं अभी चिड़िया को गिरा देता हूँ।’’ गोपी ने गुलेल से निशाना लगाया और चिड़िया जख्मी होकर जमीन पर गिर पड़ी। यह देखकर उस व्यक्ति का मन ललचा गया और वह गोपी से जादुई गुलेल छीनकर भागने लगा।
गोपी भी उस व्यक्ति को पकड़ने भागा। तभी उसने अपनी जादुई बाँसुरी की याद आई और वह रूककर बाँसुरी बजाने लगा। अब क्या था, वह व्यक्ति बाँसुरी की आवाज सुनते ही भागना छोड़कर नाचने लगा। नाचते-नाचते वह एक कांटेदार झाड़ी में गिर पड़ा।
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लेकिन गोपी ने तब भी बाँसुरी बजाना जारी रखा तो वह व्यक्ति उठकर कांटों के बीच ही नाचने लगा। उसके सारे शरीर पर काँटे चुभने लगे और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा-‘‘मुझे माप कर दो, अपनी गुलेल वापस ले लो.... मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ। भगवान के लिए बाँसुरी बजाना बंद कर दो। वर्ना मैं मर जाऊंगा।’’
पर गोपी बाँसुरी बजाता रहा, आखिर जब व्यक्ति काफी घायल हो गया और जोर-जोर से रोने लगा तो गोपी को उस पर दया आ गयी। गोपी ने बाँसुरी बंद कर उस व्यक्ति से पूछा-‘‘अब तो कभी चोरी नहीं करोगे?’’
‘‘नहीं, नहीं! मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। मुझे माफ कर दो। मेरे पास एक मोहरों से भरी थैली है वह ले लो, पर बाँसुरी न बजाओ।’’ यह कहकर उस व्यक्ति ने गोपी को एक मोहरों से भरी थैली पकड़ा दी।
उसने गोपी की गुलेल भी वापस कर दी और मन ही मन गोपी को गाली देता हुआ सीधा कचहरी पहुंचा और रोते-रोते हाकिम से बोला-‘‘हुजूर, मैं लूट गया। मैं लूट गया, हुजूर। एक बदमाश ने मुझे मार-मार कर अधमरा कर दिया और मुझसे मेरी मोहरों की थैली तथा मेरी गुलेल छीन ली।’’
‘‘कौन है वो बदमाश, कहाँ रहता है?’’ हाकिम ने पूछा। ‘‘यह तो मैं नहीं जानता, हुजूर, पर उसके पास एक गुलेल और एक बाँसुरी है। उन्हीं से उसे पहचाना जा सकता है।’’ वह व्यक्ति बोला।
अभी गोपी कुछ ही दूर पहुंचा था कि सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और हाकिम के पास ले आये।
हाकिम गोपी से बोला-‘‘देखने में तो तुम शरीफ लगते हो, बताओ तुमने इस व्यक्ति को क्यों मारा पीटा और इसकी गुलेल व मोहरों की थैली क्यों छीनी?’’
‘‘यह झूठ बोलता है हुजूर! मैंने तो इसे हाथ भी नहीं लगाया और मोहरों की थैली तो इसने खुद मुझे दी। इसे मेरा बाँसुरी बजाना अच्छा नहीं लग रहा था हुजूर।’’ गोपी न कहा।
हाकिम को गोपी की बात पर यकीन नहीं था। भला बाँसुरी बजाना बंद करवाने के लिए कोई मोहरों की थैली क्यों देगा। अतः वहाँ के कानून के मुताबिक हाकिम ने गोपी को फाँसी की सजा सुनाते हुए पूछा-‘‘मरने से पहले तुम्हारी कोई आखिरी इच्छा है तो अताओ।’’
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‘‘हुजूर, मैं मरने से पहले कुछ देर बाँसुरी बजाना चाहता हूँ।’’ गोपी बोला।
‘‘नहीं, हुजूर भगवान के लिए इसे बाँसुरी मत बजाने देना....।’’ वह व्यक्ति चिल्लाना।
लेकिन हाकिम गोपी की बात कैसे न मानता। गोपी को तो उस बूढ़े व्यक्ति ने वरदान दिया था कि जिससे भी तुम कुछ कहोगे वह तुम्हारी बात जरूर मानेगा। हाकिम ने गोपी को बाँसुरी बजाने की अनुमति दे दी।
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जैसे ही गोपी ने बाँसुरी पर धुन छेड़ी वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति नाचने लगा। जैसे-जैसे बाँसुरी की आवाज तेज होती जाती, सबका नाचना भी तेज होता जाता। काफी देर तक यही क्रम चलता रहा।
सब थककर बेहाल हो गये। तब हाकिम गिड़गिड़ा कर बोला-‘‘मैं तुम्हें आजाद करता हूँ, पर भगवान के लिए बाँसुरी बजाना बंद कर दो।’’
‘‘हुजूर, अब तो आपने देख लिया। जैसे आपने मेरी बाँसुरी बजाना बंद करवाने के लिए मुझे प्राणदान दे दिया। उसी तरह इस व्यक्ति ने भी मुझे खुद ही मोहरों की थेली दी थी।’’
हाकिम ने तुरन्त उस व्यक्ति को जेल में डाल दिया और गोपी को छोड़ दिया। क्योंकि अब तक हाकिम भी माजरा समझ चुका था।
कहानी से शिक्षा
- परोपकारी व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है। अतः हमें परोपकारी बनना चाहिए।
- हमें दूसरों की चीजों, सम्पत्तियों को देखकर व्यर्थ ही लालच नहीं करना चाहिए। बल्कि दूसरे की चीज को मिट्टी तुल्य समझना चाहिए।
- हमें सदा न्याय के रास्ते पर चलना चाहिए।
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