शुक्रवार, 18 जून 2021

Bolatee Topee Short Moral Story in Hindi- बोलती टोपी लघु नैतिक कहानी हिंदी में

Bolatee Topee Short Moral Story in Hindi- बोलती टोपी Stories in Hindi
Bolatee Topee Short Moral Story in Hindi- बोलती टोपी Stories in Hindi

 बोलती टोपी

एक गरीब किसान अपनी बीमार माँ के साथ रहता था। उसका नाम तोरोकु था। तोरोकु दिन भर खेत पर काम करता। फिर भी अपने और बीमार माँ के लिए खाना न जुटा पाता था। इसलिए वह दूसरों के खेत में भी मजदूरी करता और लोगों का बोझा ढोता।

एक दिन बहुत तूफान तथा बारिश आने की आशंका थी। उसी दिन तोरोकु को अपने गांव के बढ़ई के घर से दूसरे गांव के मुखिया के यहां एक बक्सा पहुंचाना था। मुखिया की बेटी की शादी थी। वह बक्सा उसी के लिए बनवाया गया था।

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तोरोकु को बीमार माँ ने ऐसे मौसम में घर से बाहर जाने से मना किया, लेकिन उसने एक न मानी। उसकी जिद देखकर माँ ने उसे एक पुरानी टोपी निकालकर देते हुए कहा -‘‘बेटा, यह तुम्हारे पिता जी की एकमात्र निशानी है। इसे पहनकर जाओ। शायद यह इस तूफान और बरसात में तुम्हारी मदद कर सके।’’

तोरोकु ने उस टोपी को पहना और बक्से को पीठ पर लादकर चल दिया। रास्ते में उसे थोड़ी थकान महसूस हुई। बक्से को पीठ से उतार, वह एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगा। अचानक उसे किसी की बातें करने की आवाज सुनाई देने लगीं।

आकाश से गिरा

‘‘ये आवाजें कहां से आ रही हैं? कोई दिखता क्यों नहीं?’’ उसने चिल्लाकर कहा और झुंझलाइट में अपनी टोपी सिर से उतार दी। अब उसे बातें सुनाई देना बंद हो गई। थोड़ी देर बाद जब तोरोकु ने फिर से टोपी पहनी, तो उसे बातें फिर सुनाई देने लगीं।

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‘कमाल है, टोपी पहनते ही मैं चिड़ियों, पेड़ों, नदी-पहाड़ों की बातें सुन सकता हूँ और समझ भी सकता हूँ।’-सोचते हुए वह बक्सा पीठ पर लादकर मुखिया के गांव की ओर चल पड़ा।

‘‘देखो न, तोरोकु जिस लड़की का बक्सा पहुंचाने जा रहा है, वह बहुत दिनों से बीमार है। उसका पिता बहुत चिंतित है। उसके ब्याह की तारीख भी नजदीक आ रही है। बहुत इलाज कराने के बाद भी उसकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती ही जा रही थी।’’-एक चिड़िया बोली। तोरोकु धीमी गति से चलता ध्यान से चिड़ियों की बातें सुनने लगा।

‘‘हाँ, लेकिन मुखिया के बगीचे में एक कपूर का पेड़ है। लड़की को ठीक करने का इलाज इस कपूर के पेड़ के पास है। लेकिन पेड़ों की बातें भला मनुष्य कहां समझ पायेंगे?’’-दूसरी चिड़िया ने कहा।

सोने की चाबी।

यह सुनकर तोरोकु के मुँह से निकला-‘‘मैं, मैं समझूँगा।’’ लेकिन काश, चिड़िया तोरोकु के उत्साह को समझ सकती। उन्हें न तो मनुष्य की भाषा आती थी और न ही उनके पास तोरोकु जैसी चमत्कारी टोपी थी। इस तरह तोरोकु नदी, पहाड़, पेड़, चिड़ियों की बातें सुनता, मस्ती से मुखिया के घर पहुंचा। तोरोकु ने मुखिया को बताया कि अगर वह उसे एक दिन अपने घर ठहरने की इजाजत दें, तो वह उसकी बेटी की बीमारी दूर कर सकता है।

तोरोकु मुखिया के घर ठहरा और रात होने का बेताबी से इंतजार करने लगा। आखिर रात को ही तो वह पेड़ों की बातें सुन सकता था। लोगों का ऐसा मानना था कि आधी रात में ही पेड़ आपस में बातें करते हैं। तोरोकु पीछे के बगीचे में कपूर के पेड़ के पास जाकर अपनी टोपी पहनकर चुपचाप बैठ गया। कुछ देर बाद उसे लगा कि पेड़ आपस में बातें कर रहे हैं। एक पेड़ बोला -‘‘देखो, हमारा दोस्त कपूर का पेड़ अब थोड़े ही दिनों में मर जाएगा।’’

दूसरा बोला -‘‘बेचारा दिन प्रतिदिन सूखता जा रहा है।’’

‘‘जब से मुखिया ने पीछे की पहाड़ी पर बड़ा सा पत्थर लगाकर पानी को रोका है, तब से ही यह हुआ है।’’-तीसरा बोला।

चैथा पेड़ जो इतनी देर से चुपचाप सबकी बातें सुन रहा था, बोला-‘‘ अरे, मुखिया बहुत धूर्त है। उसने सारा पानी धान के खेत में डाल दिया है।’’

‘‘वह मूर्ख यह नहीं जानता कि कपूर के पेड़ के सूखने की वजह से ही उसकी बेटी बीमार है।’’ - पाँचवां बोला।

‘‘हाँ, एक दिन कपूर के पेड़ की तरह हम भी सूखकर मर जायेंगे। लेकिन हमारी कोई नहीं सुनेेगा। कौन करेगा हमारी देखभाल?’’- उनसे से एक बुजुर्ग पेड़ भारी स्वर में गहरी साँसें लेते हुए बोला।

तोरोकु जो इतनी देर से पेड़ों की बातें सुन रहा था, तुरन्त बोल पड़ा -‘‘मैं करूंगा, मैं करूंगा तुम लोगों की देखभाल।’’

 चिड़िया का आवाज

सुबह की लालिमा पूरब की पहाड़ी से छिटकने लगी थी। तोरोकु उठकर पेड़ों की बताई गई पहाड़ी की तरफ चल पड़ा। वहां जाकर उसने देखा कि  सचमुच वहां पर एक बड़ा सा पत्थर पानी को बगीचे में जाने से रोक रहा था। तोरोकु पत्थर हटाने की कोंिशश करने लगा।

 लेकिन पत्थर इतना बड़ा था कि हिलने का नाम न लिया। तोरोकु अपनी ओर से पूरा जोर लगाकर पत्थर को हटाने की कोशिश करता रहा। 

इसी बीच मुखिया उसे ढूँढ़ते-ढूँढते वहाँ आ पहुँचा। तोरोकु को पत्थर हटाते देख, वह गुस्से से बोला-‘‘अबे मूर्ख, यह क्या कर रहा है? इससे मेरे सारे खेत सूख जायेंगे।’’ यह कहकर वह तोरोकु को वहाँ से हटाने लगा,  परन्तु तोरोकु कहाँ मानने वाला था? जिद्दी तो वह था ही। 

उसने पूरा जोर लगाया और पत्थर दूसरी ओर ढलान से लुढकता हुआ दूर जा गिरा। बगीचे की तरफ पानी बहने लगा। पानी का बहाव इतना तेज था कि मुखिया, उसके साथ बगीचे तक बहता चला गया। मुखिया को काफी चोट आई।

कुछ ही दिनों में कपूर का पेड़ लहलहाने लगा और उसके साथ के पेड़ भी हरे-भरे हो गए। कपूर के पेड़ की खुशबू वातावरण में दूर-दूर तक फैलने लगी। मुखिया की बेटी भी ठीक हो गई। तोरोकु एक दिन अपनी माँ को घुमाते हुए वहाँ ले आया। हरियाली देखकर तोरोकु की माँ भी स्वस्थ होने लगी।

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मुखिया को इस बात की काफी खुशी थी कि तोरोकु की वजह से उसकी बेटी स्वस्थ होकर अपनी ससुराल जा चुकी थी। वह समझ चुका था कि पानी की जरूरत केवल फसल को ही नहीं, बल्कि अन्य पेड़-पौधों को भी है। तोरोकु को उसने ढेर सारे रूपये इनाम में दिए। अब तोरोकु को न दूसरों के खेत पर काम करने की जरूरत थी और न ही बोझा ढोने की। उसने अपने लिए खेत खरीदे।

 ढेर सारे पेड़ लगाए। तोरोकु अब दिन भर अपने खेत में काम करता। जब थक जाता तो पेड़ों की छाया में अपने पिता की चमत्कारी बोलती टोपी, पेड़ों की , चिड़ियों की, नदी-नालों की बातें सुनता। कहते हैं, तोरोकु के गाँव में फिर कभी पानी की कमी नहीं हुई।

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