Saadhu Ka Sach Moral Stories In Hindi- साधु का सच Hindi Story |
साधु का सच
दून घाटी के दक्षिण में माजरा नाम का एक गाँव है। वहाँ के बासमती चावल विश्व भर में प्रसिद्ध है। वहाँ छंगू नाम का एक चरवाहा अपनी बूढ़ी माँ के साथ झोपड़ी में रहता था। उसकी माँ गाँव के जमींदार के खलिहान में सफाई का काम करती थी। रोज सुबह माँ दो रोटी और सब्जी बाँधकर छंगू को दे देती। छंगू सुबह अपने घर से निकल पड़ता। फिर अड़ोस-पड़ोस के दो तीन गाँवों से गायें इकट्ठी करता। उन्हें जंगल में चरने को हांक देता।
छंगू उन्हें पास के जंगल में ले जाता। वहाँ एक छोटी नदी बहती थी। वहीं वह दोपहर को नदी किनारे बैठ, रोटी खाता, पानी पीता। शाम को डंगरोें के साथ लौटता। गायों को उनके मालिकों के घरों में छोड़ देता। इसके बदले में किसी घर से उसे अनाज, किसी से साग-सब्जी, कहीं से तेल, घी, कहीं से गुड़ वगैरह मिल जाता। बस, माँ, बेटे की उसी से गुजर बसर होती।
Saadhu Ka Sach Moral Stories In Hindi-
एक शाम छंगू जंगल से गायें चराकर लौट रहा था। उसने देखा, गायों के झुंड में एक सफेद रंग की साफ सुथरी गाय भी है। छंगू ने सोचा-‘शायद किसी ने नई गाय ली होगी। पर गाय है किसकी? किसके घर इस गाय को छोडूं? चलो, गायों को छोड़ते समय पता चल ही जाएगा कि वह सफेद गाय किसकी है?’
छंगू गायों के झंड के पीछे-पीछे चल रहा था। अचानक उसने देखा, सफेद गाय झुंड में है ही नहीं। वह चिंता में पड़ गया कि अब वह सफेद गाय के मालिक को क्या जवाब देगा।
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जैसे तैसे उसने सभी गायों को उनके घरों में छोड़ दिया। किसी ने भी सफेद गाय के बारे में कुछ नहीं कहा। छंगू ने चैन की सांस ली। उसने सोचा-‘सफेद गाय पहले ही अपने घर पहुँच गई होगी। सुबह गायें लेता हुआ जंगल को निकलूँगा तब सफेेद गाय के मालिक का पता लग जाएगा।’
Hindi Kahani
दूसरे दिन छंगू ध्यान से सब घरो में गायों को इकट्ठा करता हुआ जंगल में पहुँचा। उसे गायें गिनीं, वे गिनती में पूरी थीं। पर उनमें सफेद गाय न थी।
शाम को रोज की तरह छंगू गायों को हांकता हुआ गांव की ओर लौटने लगा। अचानक उसे गायों के झंुड में सफेद गाय दिखाई दी उजली, साफ-सुथरी।
अब छंगू केवल सफेद गाय पर नजर जमाए झुंड के पीछे-पीछे चलने लगा। थोड़ी देर में छंगू ने देखा कि वह गाय जंगल में ही पेड़ों के बीच होती हुई एक ओर जा रही है। छंगू ने सोचा कि बाकी गायें तो रोज की तरह अपने-अपने घर पहंुंच ही जाएंगी। वह सफेद गाय के पीछे चल पड़ा। थोड़ी देर चलने पर छंगू को जंगल के बीच में एक कुटिया दिखाई पड़ी। उसने देखा कि गाय उस कुटिया के सामने जाकर रूक गई। छंगू आगे बढ़ा। उसने देखा, कुटिया के बाहर एक साधु बाबा धूनी रमाए बैठे हैं। वह साधु बाबा के पास पहुंचा। उसने पूछा-‘‘क्या सफेद गाय आपकी है?’’
साधु बाबा ने छंगू को अपने पास बैठने का इशारा किया। छंगू उनके पास बैठ गया। साधु बाबा ने छंगू से कहा-‘‘मैं तुम्हारे गाय चराने के काम से बहुत प्रसन्न हूँ। परन्तु कुछ दिन बाद गाय चराने का काम समाप्त हो जाएगा। मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ ताकि तुम अपनी माँ के साथ सुख से रह सको।’’
साधु ने धूनी को देखा। उन्होंने चिमटा उठाया। राख में से कुछ कोयले चुने और उन्हें छंगू की ओर बढ़ा दिया। पर छंगू ने बाबा से कहा-‘‘यदि आप मुझे कुछ देना चाहता हैं, तो कोई वरदान दे दें।’’
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साधु बाबा ने कहा-‘‘ ईश्वर का नाम लेकर तुम किसी बीमार आदमी की छुओगे, तो वह ठीक हो जाएगा।’’ छंगू साधु बाबा को प्रणाम कर चल पड़ा।
रास्ते भर छंगू साधु बाबा की बातों पर सोचता रहा। गांव के नजदीक पहुंचा। उसे पता चला कि उसकी बूढ़ी माँ के साथ गाँव के कुछ लोग उसे ढूँढ रहे हैं। छंगू ने गांव वालों को सब बातें बता दीं। इस पर गांव वालों ने कहा-‘‘हम भी साधु बाबा के दर्शन करने चलेंगे।’’
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शाम का समय थ। छंगू गांव वालों को लेकर जंगल की ओर चल पड़ा। उस जगह पहुंचा। पर वहां उन्हें कुटिया न मिली। साधु और गाय का कुछ पता न था। बस, एक स्थान पर राख अवश्य पड़ी थी। उसमें कुछ कोयले सुलगते नजर आ रहे थे। गांव वालों ने छंगू को बहुत बुरा-भला कहा। किसी को भी छंगू की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। वे उसे अकेला छोड़, गाँव को लौट गए। छंगू इधर-उधर घूमता रहा। पर उसे कुछ हाथ न लगा।
छंगू भी अपने घर चला गया। रात भर साधु बाबा और गाय के बारे में सोचता रहा।
रोजाना छंगू गाय चराने जाता और शाम को लौट आता। इसी तरह एक वर्ष बीत गया। अब छंगू के पास थोड़ी ही गायें चराने के लिए रह गई थी। गांवों के अधिकतर लोगों ने अपने घरों पर ही ग्वाले रख लिए थे। छंगू को लगा कि साधु बाबा की बातें सच साबित हो रही हैं।
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एक दिन छंगू को पता चला कि गांव का जमींदार बहुत दिन से बीमार है। वैद्य हकीम की दवा का उस पर कोई असर नहीं हो रहा है। वह जमींदार के घर पर पहुँचा। जमींदार भी छंगू की साधु बाबा वाली बात सुन चुका था। जमींदार ने छंगू को अपने पास बैठाया और अपनी बीमारी के बारे में बताया। छंगू बोला-‘‘ भगवान ने चाहा, तो आप ठीक हो जायेंगे।’’ थोड़ी ही देर में गांव वालों की भीड़ इकट्ठी हो गई। गाँव के वैद्य और हकीम भी वहाँ खड़े थे। कुछ लोग छंगू का मजाक उड़ा रहे थे। कुछ कह रहे थे कि आज साधु बाबा के इस चेले की असलियत पता लग जायेगी।
छंगू ने ईश्वर का नाम लेकर जमींदार को छू दिया, तो जैसे चमत्कार हो गया। जमींदार का रोग गायब हो गया।
सब छंगू को श्रद्धा से देखने लगे, वैद्य हकीम ठगे से रह गए।
जमींदार ने रूपयों की गड्डी छंगू की ओर बढ़ा दी। बोले -‘‘लो छंगू, यह रहा तुम्हारा इनाम।’’ परन्तु छंगू ने कहा-‘’यह धन आप गरीबों में बाँट दें।’’
उस दिन से छंगू बीमार गाँव वालों को स्वस्थ करने में जुट गया। वह किसी से कुछ नहीं लेता था। जो चलकर उसके पास नहीं आ सकते थे, छंगू स्वयं उनके पास पहुंच जाता। एक गाँव से दूसरे गाँव की यात्रा में ही उसका समय बीतने लगा। दूसरों का दुःख दूर करके छंगू को खुशी मिलती थी।
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