Greedy monk and sly barber motivational stories-लालची साधु और धूर्त नाई प्रेरक कहानियां |
लालची साधु और धूर्त नाई
एक नाई था। उसके पास एक भैंस थी। वह उसे रोज पोखर पर ले जाकर स्नान करवाता था। एक दिन जब वह उसे नहला रहा था तो उसने देखा कि किनारे पर एक बाबाजी ने तीस अशर्फियाँ गिनकर बटुए में रखीं और उसे अपनी जटा में छिपाकर बाँध लिया।
जल्दी से नाई घर आया और अपनी भैंस बाँधकर वह बाबाजी के पास पहुँचा। बाबाजी को दण्डवत् करके नाई ने कहा-‘‘बाबा जी, आपके चरण कमल मुझ गरीब के घर पड़ जाय तो मैं निहाल हो जाऊँ। अब तक न तो मुझे कोई गुरु मिला है, और न ही मेरी घरवाली को। सो मुझे अपना शिष्य बनाकर मेरा यह चोला सफल कर दीजिए। हम दोनों आपकी चरणरज पाकर धन्य हो जाएँगे।’’
पाखण्डी सियार
बाबा जी बोले- ‘‘बच्चा, अगर तू मुझे दक्षिणा में दो अशर्फियाँ देने को तैयार हो तो मैं तुझे अपना शिष्य बना सकता हूँ।’’
नाई बहुत ही नरमाई से बोला-‘‘बाबा मुझे मंजूर है। मेरे ऐसे भाग्य कहाँ कि अप जैसे महात्मा की कृपा मुझे मिले। आपके चरण कमल की दया होगी तो दो अशर्फियाँ कौन सी बड़ी बात है।’’
साधु तो लालची था ही वह दो अशर्फियों के लालच में नाई के घर चलने को तैयार हो गया। नाई ने बाबाजी का झोला अपने कंधे पर डाला और चल दिया। बाबा जी खड़ाऊँ की खटखट करते हुए उसके पीछे चले।
घर पहुँचने पर नाई और उसकी पत्नी ने बहुत भक्तिभाव से बाबा के पैर थाली में रखकर धोए। भोजन में नाना प्रकार की चीजें परोसीं।
भोजन के पश्चात् बाबा चारपाई पर लेट गए। नाई उनके पैर दबाने लगा। शिष्य की भक्ति देखकर बाबा बहुत खुश हुए। रातभर गहरी नींद में सोए।
आकाश से गिरा
सुबह निबटकर जब बाबा चलने लगे तो उन्होंने अपनी दक्षिणा माँगी। नाई ने पत्नी को सन्दूक की चाबी देते हुए कहा-‘सन्दूक में तीस अशर्फियाँ रखी हैं, उनमें से दो अशर्फियाँ लाकर गुरु महाराज को दे दे, फिर पैर छूकर आशीर्वाद ले। अगर गुरु महाराज की कृपा हुई तो तेरी गोद सूनी नहीं रहेगी।’’
वह चाबी लेकर गई और सन्दूक खोला। पर बहुत ढूँढ़ने पर भी अशर्फियाँ नहीं मिलीं। उसने आकर यही बात नाई से कह दी।
नाई अपनी पत्नी पर बिगड़ते हुए बोला-‘‘क्या कहती है तू। अशर्फियाँ नहीं हैं तो कहाँ गई? मैंने अपने हाथ से एक-एक करके गिनकर रखी हैं।’’
नाई खुद गया और थोड़ी देर बाद सन्दूक में ढूँढ-ढूँढ कर झल्लाता हुआ आया और अपनी पत्नी पर बरस पड़ा-‘‘अशर्फियाँ सन्दूक में थीं। मैंने अपने हाथ से रखी थीं। यह सब मेरी करतूत हैं। तूने ही उन्हें छिपाकर कहीं रखा है। मौका मिलने पर अपने पिता और भाइयों को दे देगी। तेरी तलाशी ली जाएगी।’’
पत्नी की तलाशी लेकर नाई ने कहा-‘‘तेरे मन में अगर यह संदेह हो कि मैंने उन्हें कहीं रख लिया है तो तू मेरी तलाशी ले ले।’’ पत्नी ने नाई की तलाशी ले ली पर अशर्फियाँ नहीं निकलीं। तब नाई ने बाबा जी से कहा- ‘‘महाराज, मेरी पत्नी बहुत शक्की मिजाज की है इसीलिए आप भी अपनी तलाशी दे दीजिए ताकि इसका शक मिट जाए।’’
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बाबाजी तुरन्त खड़े हो गए और बोले-‘‘अरे, इसमें कौन सी बड़ी बात है। मेरी तलाशी भी ले लो। कहते हुए बाबा जी ने अपने वस्त्र हिलाकर दिखा दिए।’’
नाई ने कहा-‘‘महाराज, अब आपकी जटा रह गई। उसे भी खोलकर दिखा दीजिए। मेरी पत्नी बड़े खोटे दिल की है।’’
बाबा जी पहले तो हिचकिचाए, पर क्या कर सकते थे। लाचार होकर जटा खोलनी पड़ी। जटा खुलते ही बटुए सहित अशर्फियाँ निकल आई।
सोने की चाबी।
नाई ने कहा-‘‘देखो, महाराज में तपस्या का कितना बल है। खोई हुई अशर्फियाँ इन्होंने वापस बुला दीं। वाह महाराज वाह!’’ फिर अपनी पत्नी से बोला-‘‘ले गिन ले, पूरी तीस न निकले तो मुझे कहना। इनमें से दो अशर्फियाँ महाराज के चरणों में चढ़ा दे और आशीर्वाद माँग ले ताकि सूनी गोद भर जाए।’’
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नाई की पत्नी ने एक-एक करके अशर्फियाँ गिनीं तो सचमुच तीस निकलीं। उसने दो अशर्फियाँ महाराज के चरणों में चढ़ा दीं।
नाई ने हाथ जोड़ते हुए कहा-‘‘महाराज, आपने मुझ पर बहुत उपकार किया है। जब कभी भी इधर पधारें, इस सेवक को न भूलिएगा।’’
अपना हारा और स्त्री का मारा आदमी कुछ नहीं बोलता। साधु बाबा चुप रहे। अतः हमें लालच नहीं करना चाहिए। लालच का घर खाली होता है।
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