Sachcha Vaaris motivational stories-सच्चा वारिस प्रेरक कहानियां |
सच्चा वारिस
बहुत दिनों की बात है। एक राजा था, उसके खजाने में सोना, चाँदी और हीरे जवाहरात की कमी न थी। लेकिन वह उस खजाने में से कभी भी अपने लिए कुछ खर्च नहीं करता था।
वह अपने खजाने को जनता की धरोहर मानता था और इसीलिए उसे जनता की भलाई के कामों में ही खर्च करता था। जनता की अपने राजा को बहुत प्यार करती थी। सब लोग बड़े सुखी थे। किसी को कोई शिकवा शिकायत नहीं थी।
सारी जनता राजा के साथ थी और इस तरह राज्य के लोगों की पूरी शक्ति साथ होने से राजा बहुत शक्तिशाली हो गया था। उसके पास एक बड़ी सेना थी जिसका हर सैनिक वफादार था।
यही कारण था कि पास पड़ोस के किसी राजा की इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि वह उसके राज्य की सीमा की ओर आँख उठाकर देख सके। राज्य में चारों तरफ शान्ति थी और सब लोग बड़े मजे से मेल मुहब्बत से रहते थे।
राजा में एक बहुत बड़ा गुण यह था कि वह अपने राज्य में अमीर-गरीब, छोटे बड़े सभी को एक जैसा समझता था। किसी तरह का कोई भेदभाव न होने से उसके राज्य में शेर और बकरी एक घाट पानी पीते थे। राजा में एक ही कमी थी, वह यह कि उसकी एक आँख जाती रही थी।
किसान और तीन ठग
राजा बूढ़ा हो गया और उसके कोई संतान नहीं हुई। अब क्या होगा? राजा ने रानी से कहा-‘‘ मेरी जिन्दगी के दिन पूरे हो रहे हैं, इसलिए मुझे हर समय यही चिन्ता सताए जा रही है कि मेरी मृत्यु के बाद इस गद्दी का वारिस कौन होगा? जो राजा अपने वारिस नहीं छोड़ते लोग उसके मरने के बाद उन्हें बिल्कुल भूल जाते हैं।
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आप ठीक कह रहे हैं, रानी उदास होकर बोली-‘‘लेकिन हम कर ही क्या सकते हैं।’’
इसी बातचीत के समय राजा का चतुर मंत्री वहाँ मौजूद था। वह बोला-‘‘महाराज, इंसान का नाम संतान से नहीं, बल्कि अच्छे कामों से ज्यादा रहता है। आखिर आप वारिस के लिए इतनी चिन्ता क्यों करते हैं? यह भी जरूरी नहीं कि वारिस आपकी संतान ही हो? फिर आप की संतान बुरी भी हो सकती है।’’
‘‘तो फिर हम क्या करें?’’ राजा ने विवश होकर पूछा। मंत्री ने नम्रता से कहा-‘‘एक राजा में यह गुण जरूरी है कि अक्लमंद हो, नादान न हो, बहादुर हो, डरपोक न हो।
सच्ची बात कहे व पसन्द करें और झूठी बात से हमेशा नफरत करे। आपका राज्य बहुत लम्बा चैड़ा है। तलाश कीजिए और जिस किसी में भी ये गुण दिखाई पड़े उसे अपना वारिस बना दीजिए चाहे वह भिखारी ही क्यों न हो।’’
राजा बहुत देर तक सोचता रहा फिर बोला-‘‘आप ठीक कहते हैं, लेकिन कठिनाई वह है कि ऐसे आदमी को ढूँढा कैसे जाए?’’
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‘‘मैं इसकी कोई न कोई तरकीब निकाल दूँगा।’’ मंत्री ने राजा को विश्वास दिलाया।
अगले दिन सारे राज्य में ऐलान किया गया-‘‘महाराजा की यह इच्छा है कि लोग उन्हें उनके गुण और अवगुण बताएँ। एक हफ्ते बाद सब लोग दरबार में इकटठे हो जाएँ। महाराज जिससे खुश हो जाएँगे उसे मालामाल कर देंगे।’’
राजा का यह ऐलान सुनकर सब लोग आश्चर्य में पड़ गए। मालामाल किए जाने की बात सुनकर हरेक के मुँह में पानी भर आया। निश्चित दिन हजारों की संख्या में लोग दरबार में जमा हो गए।
एक-एक करके वे राजा के सामने आते और सम्मान से सिर झुकाते, फिर उनकी प्रशंसा के पुल बाँध देते। कवियों ने उनकी प्रशंसा में लम्बी चैड़ी कविताएं पढ़ीं।
‘‘हमारे महाराज दुनिया के सबसे अच्छे व्यक्ति हैं।’’ एक आदमी ने कहा।
‘‘हमारे महाराज की चतुराई का कोई जवाब नहीं।’’ दूसरे ने कहा।
सोने की चाबी।
तीसरा बोला-‘‘हमारे महाराज बहुत सुन्दर हैं, इनकी सुन्दरता के सामने चाँद भी शरमाता है।’’
लोग एक दूसरे के बाद इसी तरह आते रहे और महाराज के गुणों का बखान करते रहे। जो राजा की प्रशंसा कर चुकता, मंत्री जी एक ठंडी साँस भरकर उससे कहते, भाई तुम जा सकते हो।
जो दरबार में केवल कुछ लोग ही बाकी रह गए, तो राजा ने मंत्री से कहा-‘‘इतने लोगों ने हमारी प्रशंसा की लेकिन आपने सबको ही जाने के लिए कह दिया। आपकी तरकीब हमारी समझ में बिलकुल नहीं आई।’’
‘‘सब्र से काम लीजिए, महाराज।’’ मंत्री ने कहा- ‘‘थोड़ी देर में आप सब कुछ समझ जाएँगे।’’
इसके बाद बाकी लोगों को भी बुलाया गया। उन्होंने भी राजा के गुणों का खूब बखान किया, और मंत्री ने उन सबको भी उसी तरह चलता कर दिया।
दरबार में केवल एक लड़का रह गया था, जो फटे पुराने कपड़ो से शरीर को ढँके हुए था। पर उसकी आँखों में एक निराली चमक थी।
मंत्री ने उस लड़के से कहा-‘‘तुम अपने महाराज की प्रशंसा में कुछ नहीं कहना चाहते? इस तरह चुपचाप क्यों खड़े हो?’’
‘‘मैं सोच रहा हूँ, मंत्री जी।’’ लड़का ऊँची आवाज में बोला-‘‘सब लोगों ने झूठ ही बोला है।’’
‘‘वह किस तरह?’’ मंत्री ने उससे पूछा।
लड़के ने बड़ी शान्ति से कहना शुरू किया। वह इस तरह कि एक आदमी ने यह कहा कि महाराज की सुन्दरता के सामने चाँद भी शरमाता है। बिलकुल झूठ है, महाराज सुन्दर नहीं हैं। उनकी तो आँख भी एक ही है।
‘‘खामोश बेवकूफ’’ राजा ने तलवार म्यान से निकाल ली।
‘‘सब्र कीजिए महाराज।’’ मंत्री ने राजा से प्रार्थना की।
दूसरी बात लड़के ने राजा के क्रोध की परवाह न करते हुए कहा-‘‘कुछ लोगों ने महाराज की चतुराई और अक्लमंदी की बहुत प्रशंसा की हैं, जबकि महाराज चतुर बिलकुल नहीं हैं।’’
‘‘जबान खींच लूँगा, बदजबान।’’ राजा ने बिगड़कर कहा।
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‘‘सब्र कीजिए, महाराज।’’ मंत्री ने धीरे से कहा और फिर लड़के से पूछा-‘‘यह तुम कैसे सिद्ध करोगे?’’
लड़का मुस्करा कर कहने लगा-‘जब लोग महाराज की झूठी प्रशंसा कर रहे थे, तो उनका चेहरा खुशी से खिला जा रहा था। उनको यह मालूम होना चाहिए कि वह प्रशंसा कभी सच्ची नहीं होती जो मुँह पर की जाए। क्या हमारे महाराज में कोई अवगुण नहीं?’’
यदि है तो लोगों में से किसी ने उन्हें बताया नहीं जो लोग हमारी बुराईयां हमें नहीं बता सकते, वे यदि प्रशंसा करें तो इस पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए, ऐसा बुद्धिमानों का कहना है।
आकाश से गिरा
झूठी प्रशंसा के पुल बाँधने वाले सब लोग स्वार्थी हैं, लालची हैं, खुशामदी हैं, महाराज जी को ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए। समझदार लोग अपनी अच्छाईयों की बजाए अपनी बुराईयों को अधिक ध्यान से सुनते हैं।
लड़के की बातें सुनकर राजा ने शर्म से सिर झुका लिया और मंत्री से कहा-‘‘मंत्री जी, आपकी तरकीब अब हमारी समझ में आ गई। वास्तव में यही लड़का हमारा वारिस बनने के योग्य है क्योंकि यह बहादुर है, अक्लमंद हैं, और सच्चा है।’’
राजा के मरने के बाद उसी लड़के को गद्दी पर बैठाया गया और वह जनता के लिए बहुत ही अच्छा साबित हुआ।
कहानी से शिक्षा
- सच कड़वा होता है परन्तु हमें इससे नहीं डरना चाहिए।
- बुद्धिमान लोेग अपनी झूठी प्रशंसा सुनने के बजाए अपनी बुराईयों, अवगुणों को सुनना ज्यादा पसंद करते हैं।
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