Kisaan Aur teen Thag kahaniyan- किसान और तीन ठग कहानियाँ |
किसान और तीन ठग
एक बार बहुत कड़ा सूखा पड़ गया। चारो ओर हाहाकार मच गया। जानवर तो जानवर इंसानों को खाने के लाले पड़ गये। किसानों ने अपने जानवरों से छुटकारा पाने के लिए उन्हें कम दामों में बेचना आरम्भ कर दिया। रामू किसान ने भी अपनी गाय बेचने का इरादा कर लिया। रामू ने खूँटे से गाय की रस्सी खोली और उसे दुलारता बाजार की ओर चल दिया।
बाजार में अच्छे-बुरे, चोर-ठग सभी आते हैं। रामू के पीछे भी ठग लग गये। एक ठग रामू के पास पहुँचकर बोला-‘‘क्यों भाई, गाय बिकाऊ है?‘‘ है तो बूढ़ी परन्तु एक बछड़े को जन्म दे ही देगी। रामू ने कहा-‘‘तुमने मेरी गाय को बूढ़ी क्यों कहा-ये तो जवान है एक नहीं दस बछड़े जनमेगी।’’ मैं तो इस सौ रूपये में बेचूँगा, सूखे के दिन है वरना इसे पाँच सौ में बेचता।
ठग हँसकर बोला-‘‘मैं तो दस रूपये लगता हूँ।’’ बोल राजी हो तो सौदा पक्का। बूढ़ी गाय के दस रूपये कम नहीं हैं। सूखे के दिन हैं दस रूपये बहुत हैं। किसान को क्रोध तो बहुत आया परन्तु चुप रहा और आगे चल दिया। थोड़ी ही दूर चला होगा कि दूसरा ठग मिल गया। गाय देखते ही बोला। बूढ़ी गाय बिकाऊ है? किसान ने गुस्से में कहा गाय बिकाऊ है। परन्तु इसे बूढ़ी मत कहिए। यह तो जवान है। ठग ने हँसकर कहा बूढ़े को बूढ़ा कहा ही जायेगा। नई रस्सी से बाँधने पर बूढ़ी गाय जवान थोड़ी ही हो जायेगी।
कुछ भी हो मैं सौ रूपये लूँगा, लेना हो तो लो वरना अपना रास्ता नापो। किसान ने कहा।
पाँच रूपये दूँगा देना हो दो, नहीं तो इसकी रस्सी हाथ में लिए घूमते रहो। इसके पांच रूपये से अधिक कोई नहीं नहीं देगा, ठग ने कहा।
वह अभी थोड़ी ही दूर गया होगा कि तीसरा ठग आया और बोला-‘‘क्यों भाई, यह बूढ़ी गाय बिकाऊ है? बोलो कितने रूपये में दोगे?’’ रामू ने चिढ़कर कहा-‘‘जवान गाय तुम्हें बूढ़ी मालूम पड़ती है, आँखें साफ करके देखो फिर बात करना।’’
ठग बोला गाय बूढ़ी है इसके तीन रूपये दूँगा। बोलो राजी हो? किसान ने गाय की तरफ देखा, उसे सहलाया और कहा-‘‘मैं तो सौ रूपये लूँगा।’’ थोड़ी ही दूर एक कुआँ था। कुएँ के पास एक घना पेड़ था। किसान वहाँ पहुँचा। गाय को पानी पिलाया, स्वयं पानी पीकर गाय को पेड़ से बांध दिया और पेड़ के नीचे लेटकर आराम करने लगा। उसी समय वह तीनों ठग वहाँ आ गये और फिर गाय खरीदने की बात करने लगे।
आग ने कहा
ठगों ने कहा-‘‘चलो, किसी को पंच बना लें जो कीमत पंच लगाए उसी कीमत पर हमें अपनी बूढ़ी गाय बेच देना।’’ रामू को पंच के निर्णय पर भरोसा था। उसने कहा कि ठीक है, पंच से फैसला करा लो। तीनों ठगों ने पेड़ के पास ही लेटे एक बूढ़े को पंच बनाने को कहा। वह तैयार हो गया। झट से उठकर पल्थी मारकर बैठ गया। उनकी बातें सुनी फिर गाय को गौर से देखा दुम से सींग तक टटोला फिर बोला-‘‘भाई यह गाय बूढ़ी है, दूध देगी नहीं, सूखे के दिन हैं इस गाय के ढाई रूपये से ज्यादा कीमत नहीं होगी।’’
किसान बूढ़े की बात सुनकर हक्का-बक्का रह गया। वह ठगों को जबान दे चुका था, इसीलिए हार गया। गाय को ढाई रूपये में बेच दिया। लेकिन अब उसे मालूम पड़ रहा था कि वह ठग लिया गया है।
उसने दिल ही दिल में सौगंध खायी कि अपनी गाय की मुँह माँगी कीमत की तीन गुनी रकम न ली तो रामू मेरा नाम नहीं। रामू अपने गाँव की तरफ चल पड़ा। परन्तु थोड़ी ही दूर तक जाकर एक पेड़ के पीछे छुप गया। उसने उन ठगों का पीछा किया तो पता लगा कि वह बूढ़ा और तीनों ठग एक ही परिवार के थे। रामू ने उनका घर देख लिया और वापस घर आ गया।
कर भला तो हो भला
अगले दिन रामू ने एक स्त्री का वेश बदला और घूँघट निकालकर बूढ़े ठग के दरवाजे पर जा पहुँचा। उसने रो-रोकर अपनी विपदा बताई तो बड़ा ठग बोला मेरे किसी बेटे से विवाह कर लो। तीनों जवान ठगों का विवाह नहीं हुआ था। प्रत्येक विवाह के लिए तैयार हो गया। तब किसान ने कहा-‘‘मैं तो तीनों में से उसके साथ विवाह करूँगी जो सबसे अधिक दौड़ता है।’’ यहाँ से पाँचकोस दूर एक तालाब है जो वहाँ से एक बाल्टी पानी सबसे पहले लेकर लौटेगा मैं उसी के साथ विवाह करूँगी।
तीनों ठग बाल्टियाँ उठाकर तालाब की ओर दौड़ पड़े। उधर स्त्री बने किसान ने जनाने कपड़े उतारे और बूढ़े को ललकारा झूठे, बेईमान पंच मेरे साथ धोखा किया। क्या मेरी गाय ढाई रूपये की थी? बूढ़ा ठग डर गया। किसान ने जमकर उसकी पिटाई की, बूढे़ ने जान छुड़ाने को सौ रूपये रामू के हवाले किये। रामू रूपये लेकर चलता बना।
उधर लड़के पानी की बाल्टियाँ लेकर वापस आये तो बूढ़े ठग ने कहानी सुनाई। दूसरे दिन किसान ने वैद्य का रूप धरा और ठगों के दरवाजे से जोर-जोर चिल्लाता हुआ निकला। दवा ले लो चोट-फोट की दवा ले लो, इलाज करा लो। बूढ़े ठग ने आवाज सुनी तो उसे अंदर बुलवा लिया।
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वैद्य ने ठीक उसी स्थान पर हाथ रखा जहाँ कल मारा था। बूढ़े ने समझा वैद्य बहुत अच्छा है, चोट का ठीक पता लगा लिया। मुझे जल्दी ठीक कर देगा। रामू ने इलाज के नाम पर सौ रूपये बूढ़े से झटक लिये। रामू किसान को अभी पूरी तरह संतोष नहीं हुआ था। उसने अंतिम बार इरादा किया कि अभी सौ रूपये और लेने हैं।
तीसरे दिन उसने गाँव के कुछ नौजवानों को बुलाकर इकटठा किया और पूछा तुम में से कौन सबसे अधिक दौड़ता है। एक नौजवान आगे आया तो किसान ने कहा मैं तुम्हें पांच रूपये दूँगा। एक काम करो, फला आदमी के घर के सामने जाना और यह कहकर दौड़ जाना कि बूढ़े ठग क्या मेरी गाय ढाई रूपये की थी। बूढ़े ठग का घर भी उसने दिखा दिया। नौजवान ने ठग के मकान के सामने पहुँचकर जैसे ही कहा-‘‘बूढ़े ठग क्या मेरी गाय ढाई रूपये की थी।
सोने की चाबी।
ठग के लड़के उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ते चले गये। भला वह कहाँ उनके हाथ आने वाला था।’’ इधर किसान बूढ़े ठग के सामने पहुँचकर गर्जा, बूढ़े ठग क्या मेरी गाय ढाई रूपये की थी? बूढ़ा घबराकर हाथ जोड़ने लगा और बोला-‘‘बाबा मेरा पीछा छोड़ो मैं अब किसी से ठगी करूँगा।’’ ये लो सौ रूपये और मुझे क्षमा कर दो।
रामू किसान प्रसन्न होकर अपने घर लौट आया और अपनी सौगंध पूरी कर ली। जो कीमत अपनी गाय की लगी थी उसकी तीन गुनी रकम वसूल कर ली। बूढ़े ठग के लड़के घर लौटे। वह उसे नौजवान को पकड़ नहीं पाये थे। बूढ़े ने लड़कों को फिर कहानी सुनायी। बूढ़े के साथ लड़कों ने भी तय कर लिया कि अब ठगी का काम नहीं करेंगे और ईमानदारी से कमाएँगे।
कहानी से शिक्षा
- जैसा को तैसा।
- हमें मेहनत की कमाई खानी चाहिए, ठगी का काम कभी नहीं करना चाहिए।
- विपत्ति आने पर भी हमें विवेक नहीं खोना चाहिए और बुद्धि से काम लेना चाहिए।
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