शुक्रवार, 18 जून 2021

Gadha Hua Dhan hindi moral stories- गढ़ा हुआ धन Hindi Kahani

Gadha Hua Dhan stories in hindi- गढ़ा हुआ धन हिंदी में कहानियां
Gadha Hua Dhan stories in hindi- गढ़ा हुआ धन हिंदी में कहानियां

 गढ़ा हुआ धन

बहुत पुरानी बात है। रामपुर नामक गाँव में एक आदमी रहता था। उसका नाम था धपोर चन्द्र। धपोर चन्द्र बहुत ही आलसी और कामचोर आदमी था। इसलिए गाँव के लोग कई बार उसे समझा चुके थे कि कुछ काम धाम किया कर। परन्तु वह पत्थर की तरह टस से मस नहीं हुआ। लोग समझाते-समझाते थक गये और इसके बाद समझाना ही बंद कर दिया।

दिन रात बैठे-बैठे वह एक ही बात सोचता कि काश मुझे गढ़ा हुआ खजाना मिल जाता, तो अपने लिए शानदार महल बनवाता, ढेर सारे नौकर रखता और आराम से रहता।

धपोर चन्द्र की पत्नी कामनी बहुत परेशान थी। बेचारी दिन भर मेहनत-मजदूरी करके बच्चों और पति का पेट भरती थी। कामनी यदि धपोर चन्द्र को कुछ काम करने की सलाह देती, तो वह उसे मारने-पीटने लगता था। उसके पास कुछ खेत भी थे, परन्तु मेहनत के अभाव में वे बंजर से हो गए थे। एक बार भीषण अकाल पड़ा। चारों ओर हाहाकार मच गया। 

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लोग भूखों मरने लगे। कामनी बेहद चिन्तित थी। मगर धपोर चन्द्र पर कोई प्रभाव न पड़ा। वह पहले की तरह ख्यालों की दुनिया मेें खोया रहता। कामनी ने जो थोड़ी बहुत रकम बचाकर रखी थी, वह भी खत्म होने लगी। उसी समय गाँव में एक संत आए। वे बड़ी ही मीठी वाणी में प्रवचन करते। गाँव के लोग बड़ी श्रद्धा से उनका प्रवचन सुनते थे। 

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एक दिन कामनी सन्त के पास गई और अपना दुखड़ा कह सुनाया। उसकी बात सुनकर सन्त मुस्कराये और बोले कि बेटी धीरज रख। सब ठीक हो जायेगा। जा अपने पति को मेरे पास भेज। उससे कहना कि संत तुम्हें गढ़े हुए धन का  पता बताने बुला रहे हैं।

सच्चा वारिस

कामनी प्रणाम करके चली गयी और घर जाकर अपने पति से वही बात कह दी जो सन्त ने बताई थी। धपोर चन्द्र दौड़ा-दौड़ा संत के पास गया। महाराज-महाराज, मुझे जल्दी से गढ़े हुए धन का पता बताइये। सन्त बोले कि धैर्य से बैठ बेटा, मैं तुझे धन का पता बताता हूँ।

जल्दी कीजिए महाराज, मेरी व्याकुलता बढ़ती जा रही है। धपोर चन्द ने कहा। उस धन को प्राप्त करना आसाना नहीं है पुत्र! जी तोड़ मेहनत करनी होगी। संत बोले। मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ महाराज! धपोर चन्द्र उतावला हुआ जा रहा था।

संत कुछ सोचते रहे, फिर बोले कि तेरे पास कोई खेत है? धपोर चन्द्र ने ‘हाँ’ में सिर हिलाया। तो चल, मैं तुझे वहीं बताऊँगा। संत धपोर चन्द्र को लेकर उसके खेत की तरफ चल पड़े। वहाँ पहुँचकर उन्होंने एक समतल जगह पर बहुत बड़ा वृत्त खींचकर कहा कि देखो वत्स, इस वृत्त के अन्दर ही वह धन गड़ा हुआ है। यहाँ खुदाई प्रारम्भ कर दो। हाँ, इतना ध्यान रखना कि यदि तूने परिश्रम से जी चुराया, तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।

 दुष्टरानी और छोटा भाई

 मैं आपकी आज्ञानुसार ही काम करूँगा, महाराज! मेहनत से जरा भी जी नहीं चुराऊँगा, धपोर चन्द्र ने कहा और घर से फावड़ा आदि लाकर खुदाई प्रारम्भ कर दी। उसके दिमाग में तो गढ़े हुए धन पाने का भूत सवार था। 

वह दिन-रात मेहनत कर जमीन की खुदाई करता रहा। धीरे-धीरे वह गड्ढा कुआँ का रूप धरता जा रहा था, तभी एक दिन धपोर चन्द्र ने जमीन पर कुदाल मारी, तो पानी का फव्वारा फूट पड़ा। धपोर चन्द्र घबराया हुआ संत के पास पहुँचा।

महाराज-महाराज, वहाँ धन तो नहीं मिला, अलबत्ता वह गड्ढा पानी से भर गया है। अब वह धन मुझे कैसे मिलेगा? धीरज रख बेटा, तू धन के पास पहुँच गया है। संत जी बोले। अब तू खेत की जुताई कर बीज बो दे और उसी कुएँ के पानी से सिंचाई कर। पौधों से सोने की बालियाँ निकलेंगी और इससे ही तू मालामाल हो जाएगा।

धपोर चन्द्र को युक्ति बता संत जी गाँव छोड़कर अन्यत्र चले गये। धपोर चन्द्र के सिर से धन पाने का भूत अभी तक नहीं उतरा था। उसने खेत की जुताई कर बीज बो दिए और उसी कुएँ के पानी से सिंचाई करने लगा। बीज से पौधे निकले और समय के साथ-साथ बढ़ने लगे। लहलहाती फसलों को देखकर धपोर चन्द्र का मन झूम उठता था। 

धीरे-धीरे उसके मस्तिष्क से ‘गढ़े हुए धन’ पाने का पागलपन दूर हो गया। वह पूरी लगन से फसल की देखभाल में रम गया था। अकाल के बावजूद भी उसके खेतों में सोलह आने फसल हुई थी। उसके खेतों में हुई फसल उसके कठिन परिश्रम का फल था। अब वह मेहनत का मूल्य समझ चुका था।

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एक दिन वही संत पुनः गाँव आये। वे सबसे पहले धपोर चन्द्र के खेत पर गए और बोले कि तुझे धन मिल गया बेटा।

धपोर चन्द्र संत के पैरों पर गिर पड़ा और कहने लगा कि आपने तो मेरी आँखें खोल दी। मेहनत से बड़ा धन कोई नहीं है। मैं मेहनत के महत्व की अच्छी तरह समझ गया हूँ। 

इस प्रकार धपोर चन्द्र गाँव का सुखी और सम्पन्न किसान बन गया। अब लोग उसे आलसी राम नहीं बल्कि चतुर सिंह कहते थे।

कहानी से शिक्षा

  • आलस्य ही हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। अतः हमें आलस्य त्याग कर स्वावलम्बी इंसान बनना चाहिए।
  • हमें मेहनत से जी नहीं चुराना चाहिए।
  • सच्ची लगन और कठिन परिश्रम से किये गये कार्यों का फल हमेशा मीठा होता है और इसका फल अवश्य ही मिलता है, चाहे वह देर से ही सही।

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